प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह भारत-कनाडा संबंधों, इजराइल-ईरान संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध और एससीओ सम्मेलन से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. भारत और कनाडा के तनावपूर्ण संबंध अब कटुता के दौर में पहुँच गये हैं। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- यह सब चुनावी राजनीति का चक्कर है। उन्होंने कहा कि दरअसल घरेलू स्तर पर अपनी गिरती लोकप्रियता रेटिंग और सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष के चलते ट्रूडो को यह कदम उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कनाडाई मीडिया में भी ट्रूडो के इस कदम को अगले साल के संघीय चुनावों से पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिख समुदाय को लुभाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जीवनयापन की बढ़ती लागत, खराब स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और बढ़ती अपराध दर की शिकायतों के बीच, इप्सोस सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल 26% लोगों ने ट्रूडो को सर्वश्रेष्ठ पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा, जोकि कंजर्वेटिव नेता पियरे पोइलीवरे से 19 प्रतिशत अंक कम है। उन्होंने कहा कि कई राजनीतिक विश्लेषक भी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि ट्रूडो की पार्टी को ब्रिटेन में कंजर्वेटिवों की तरह ही चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कनाडा में 7.7 लाख से अधिक सिख हैं, जो चौथा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। उन्होंने कहा कि माना जाता है कि कनाडा में सिखों का एक बड़ा वर्ग खालिस्तान की मांग का समर्थन करता है।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों पर ट्रूडो की नीति को लेकर भारत हमेशा आपत्ति जताता रहा है। पिछले साल नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी ट्रूडो के साथ बैठक के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा में चरमपंथियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि वैसे यह पहली बार नहीं है कि अलगाववादियों ने भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय संबंधों में बड़ी खटास पैदा की है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो के पिता, पियरे ट्रूडो जब कनाडा के प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने भी नई दिल्ली के साथ बेहतर संबंध नहीं रखे थे क्योंकि वह भी वोट बैंक की राजनीति के चलते अलगाववादियों के साथ थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक और कारण यह समझ आ रहा है कि ट्रूडो ने भारत विरोधी कदम एक बार फिर इसलिए उठाया है क्योंकि उनकी सरकार पर आरोप लगा है कि वह घरेलू राजनीति में चीन के हस्तक्षेप को रोकने में लापरवाही बरत रही है। उन्होंने कहा कि कनाडा ने अपने सहयोगी देशों से भी भारत के खिलाफ समर्थन मांगा लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो ट्रूडो के मंत्रिमंडल में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं, जो भारत को लेकर चरमपंथी और अलगाववादी एजेंडे से खुले तौर पर जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि कनाडाई प्रधानमंत्री भारत पर तमाम तरह के आरोप लगा रहे हैं मगर कोई सबूत नहीं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कनाडा सरकार ने कई अनुरोधों के बावजूद भारत सरकार के साथ एक भी सबूत साझा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि इससे इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह जांच के बहाने राजनीतिक लाभ के लिए जानबूझकर भारत को बदनाम करने की एक रणनीति है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो की सरकार एक ऐसे राजनीतिक दल पर निर्भर थी, जिसके नेता भारत के खिलाफ खुलेआम अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि यह भी कोई संयोग नहीं है कि कनाडा सरकार की ओर से तनाव उस समय बढ़ाया गया है जब प्रधानमंत्री ट्रूडो को विदेशी हस्तक्षेप पर एक आयोग के समक्ष गवाही देनी है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो सरकार भारत विरोधी अलगाववादी एजेंडे को बढ़ावा देती है लेकिन अब उसे इसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी क्योंकि अबकी बार जो बैर लिया गया है उसका बुरा आर्थिक प्रभाव कनाडा की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है।
प्रश्न-2. इजराइल-ईरान संघर्ष अब किस दिशा में जा रहा है?
उत्तर- इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को आश्वासन दिया है कि इजरायल की योजना केवल ईरान में सैन्य ठिकानों पर हमला करने की है, परमाणु या तेल सुविधाओं पर नहीं। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि नेतन्याहू ने 9 अक्टूबर को एक फोन कॉल के दौरान बाइडन को बताया कि इज़राइल केवल ईरान में सैन्य बुनियादी ढांचे को लक्षित करने की योजना बना रहा है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू की योजना से व्हाइट हाउस काफी राहत में बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इजराइल को यह बात समझ आ गयी है कि अगर वह ईरान में तेल सुविधाओं पर हमला करता है, तो ऊर्जा की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। इसके अलावा ईरानी परमाणु सुविधाओं पर हमले से भी तनाव बढ़ सकता है और अमेरिका के व्यापक संघर्ष में फंसने का खतरा बढ़ सकता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इससे पहले भी बाइडन ने कहा था कि वह इजराइल के लिए ईरान में परमाणु सुविधाओं पर हमला करने को उचित नहीं मानते हैं। उन्होंने कहा कि इजराइल की बातों से आश्वस्त होकर अमेरिका ने उसे मदद बढ़ दी है। उन्होंने कहा कि इजराइल की रक्षा में मदद करने के लिए लगभग 100 अमेरिकी सैनिक जल्द ही वहां सक्रिय ड्यूटी पर होंगे। उन्हें टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) बैटरी के साथ तैनात किया जाएगा। उन्होंने कहा कि THAAD की तैनाती ईरान पर इज़राइल के अपेक्षित जवाबी हमले से पहले एक राजनीतिक और सैन्य संकेत भी है। उन्होंने कहा कि हमें THAAD की तैनाती को इज़राइल की सुरक्षा के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता के रूप में देखना चाहिए।
प्रश्न-3. रूस-यूक्रेन युद्ध अब किस मोड़ पर है?
उत्तर- रूस धीरे-धीरे बढ़त हासिल करता जा रहा है और यूक्रेन जहां था वहां से भी पीछे हटता जा रहा है जिससे साफ प्रदर्शित हो रहा है कि रूस के लिए जीत अब ज्यादा दूर नहीं है। उन्होंने कहा कि वैसे जीत का प्लान घोषित करने का शौक यूक्रेनी राष्ट्रपति को ज्यादा है। उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में वोलोदमीर जेलेंस्की अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन को अपने विक्ट्री प्लान के बारे में बता कर आये थे और अब वह मददगार देशों को अपने विक्ट्री प्लान के बारे में बता रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि उनकी सेना रूस के सामने टिक ही नहीं पा रही है। उन्होंने कहा कि हालात यह हैं कि जवानों और रक्षा साजो सामान की यूक्रेन में भारी कमी हो गयी है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन में एक भावना और उभर रही है कि जनता चाह रही है कि जितना इलाका रूस ने ले लिया है वह उसे दे दिया जाये और युद्ध समाप्त करवाया जाये ताकि वह शांति से रह सकें। लेकिन यूक्रेन और उसके मददगार देश किसी भी कीमत पर पुतिन को जीतने नहीं देखना चाहते इसलिए यूक्रेन को जल्द ही और मदद का आश्वासन दे रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूसी सेना पूर्व में आगे बढ़ रही है क्योंकि वह चाहती है कि सर्दियां आने से पहले अपनी पोजीशन मजबूत कर ली जाये। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले महीने ही कहा था कि रूस उन परिदृश्यों की सूची का विस्तार कर रहा है जो उसे परमाणु हथियार लॉन्च करने पर विचार करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा युद्ध क्षेत्र की बात करें तो उसका विस्तार होता जा रहा है। रूसी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि रूसी ग्लाइड बमों ने यूक्रेनी सैनिकों के केंद्र पर हमला किया है। उन्होंने कहा कि बयान में कहा गया है कि हमला “यूक्रेनी सशस्त्र बल कर्मियों के एक मजबूत केंद्र” के खिलाफ किया गया था और बम एक रूसी Su-34 युद्धक विमान द्वारा गिराये गए थे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि उसकी सेना ने पूर्वी यूक्रेन के मायखाइलिव्का गांव पर नियंत्रण कर लिया है, जहां वे पोक्रोव्स्क के महत्वपूर्ण लॉजिस्टिक हब की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, इसी सप्ताह यूक्रेन की वायु सेना ने कहा कि रूस ने रात भर में यूक्रेनी क्षेत्र को निशाना बनाकर 68 ड्रोन और चार मिसाइलें दागीं। उन्होंने कहा कि वायु सेना ने टेलीग्राम मैसेजिंग ऐप पर कहा कि दो इस्कंदर-एम बैलिस्टिक मिसाइलों ने पोल्टावा और ओडेसा क्षेत्रों पर हमला किया और दो Kh-59 निर्देशित वायु मिसाइलों ने चेर्निहाइव और सुमी क्षेत्रों को निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि यूक्रेनी वायु सेना ने कहा कि यूक्रेन की वायु रक्षा इकाइयों ने 31 ड्रोनों को नष्ट कर दिया, जबकि 36 का पता नहीं चला।
प्रश्न-4. एससीओ सम्मेलन की क्या उपलब्धियां रहीं? क्या विदेश मंत्री जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा से भारत-पाक संबंधों में कोई सुधार आयेगा?
उत्तर- दोनों देशों के संबंधों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं लगती क्योंकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर की पाकिस्तान यात्रा के दौरान सिर्फ औपचारिक अभिवादन को छोड़ दें तो किसी भी तरह की द्विपक्षीय वार्ता नहीं हुई। इसके अलावा एससीओ सदस्य देशों के संबोधनों से भी कोई बड़ी बात निकल कर सामने नहीं आई। भारत ने भी इस अवसर का उपयोग पाकिस्तान और चीन को आड़े हाथों लेने के लिए किया। उन्होंने कहा कि जहां तक विदेश मंत्री एस जयशंकर के संबोधन की बात है तो उन्होंने पाकिस्तान को उसी की धरती से परोक्ष संदेश देते हुए साफ कहा कि यदि सीमा पार की गतिविधियां आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की ‘‘तीन बुराइयों’’ पर आधारित होंगी तो व्यापार, ऊर्जा और संपर्क सुविधा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि जयशंकर ने शंघाई सहयोग संगठन के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि व्यापार और संपर्क पहलों में क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को मान्यता दी जानी चाहिए और भरोसे की कमी पर ईमानदारी से बातचीत करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जयशंकर ने ये टिप्पणियां पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच जारी सैन्य गतिरोध और हिंद महासागर एवं अन्य रणनीतिक जलक्षेत्रों में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत को लेकर चिंताओं के बीच की।