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आजकल के शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाकर जरुरी है कि स्कूलों में छात्रों को देश के योग्य वैज्ञानिकों के बारे में बताया जाए। स्कूल की किताबों में सिर्फ विक्रम साराभाई जैसे कुछ चुनिंदा वैज्ञानिकों का जिक्र मिलता है मगर इसमें बदलाव लाकर छात्रों को अधिक वैज्ञानिकों के बारे में बताना चाहिए। ये कहना है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण का।
एएनआई के साथ पॉडकास्ट में बात करते हुए उन्होंने कई पहलूओं पर चर्चा की है। इस दौरान नंबी नारायणन ने बताया कि जब उनपर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था तो उसके बाद उन्हें लंबे अर्से तक लड़ाई लड़ी थी और जीवन का सबसे नीचला स्तर देखा था। उन्होंने बताया कि उनके जीवन में एक समय ऐसा आया था जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया था और पुष्टि की थी मुझ पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद है। उन्होंने कहा कि ये पुष्टि सुप्रीम कोर्ट के सिर्फ मेरे कोर्ट में रखी गई अपनी बात के कारण ही थी। मैं वर्षों तक सिर्फ एक इस पल के लिए काम करता रहा और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे समझा और मेरे हक में अपनी बात रखी।
नंबी नारायणन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट से आदेश मिलने के बाद लगा कि लोगों को जीवन जीने के लिए उम्मीद है क्योंकि न्याय व्यवस्था अच्छी है। न्याय व्यवस्था को श्रेय देते हुए उन्होंने कहा कि आज में इसी कारण आराम से रह रहा हूं। अपनी बेटी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमारा एक मॉन्टेसरी स्कूल है जो बीते एक वर्ष से सफलता के साथ काम कर रहा है, जहां छोटे बच्चों से मिलकर मुझे खुशी मिलती है।
पत्नी के बारे में भी की बात
गौरतलब है कि नंबी नारायण के ऊपर कई आरोप लगाए गए थे मगर उनकी पत्नी ने हमेशा उनका साथ दिया। यही नहीं उनकी पत्नी की सेहत इस कारण बेहद खराब हुई। इस संबंध में बोलते हुए उन्होंने कहा कि मैं किसी समय में अपनी पत्नी पर बेहद चिल्लाता भी था और गुस्सा करता था। मगर मैंने बीते 25 वर्षों से उनपर कभी गुस्सा नहीं किया खासतौर से जब वो मेरे साथ खड़ी रही जब कोई नहीं था। मैंने उसके बाद उन्हें कुछ भी कहना बंद कर दिया।
जानिए कैसा होता है वैज्ञानिकों का दिमाग
नंबी नारायणन ने एएनआई के साथ हुए पॉडकास्ट में नौकरी से प्यार करना और इसके लिए चुकाने वाली कीमत का भी जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि जब कोई व्यक्ति अपनी नौकरी से प्यार करने लगता है और उससे बंध जाता है तो व्यक्ति अपने परिवार की तरफ थोड़ा कम ध्यान देने लगता है। नौकरी से अधिक प्यार करने के कारण हम अपने बच्चों का भी ठीक से ख्याल नहीं रख पाते है। किसी भी वैज्ञानिक का स्वभाव भिन्न हो सकता है। रॉकेट साइंटिस्ट अपनी प्रयोग को देखकर खुश हो जाता है क्योंकि सब उसकी आंखों के सामने काम कर रहा होता है। जब भी कोई बड़ा टेस्ट होता है तो उतुस्कता सातवें आसमान पर होती है। किसी बड़े टेस्ट के होने से पहले भी मैं भगवान के दर पर जाता हूं और प्रार्थना करता हूं कि टेस्ट सफलता के साथ पूरा हो जाए। जब टेस्ट सफलता के साथ होता है तो खुशी होती है मगर अगर टेस्ट सफल नहीं होता तो उसके पीछे का कारण जानने की कोशिश करते है।
श्रीहरिकोटा में मिली थी सिर्फ खाली जमीन
अपने इस पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि जब हमें थुंबा में भेजा गया तो वहां कुछ नहीं था, हमें यहां सुरक्षा और सेफ्टी के कारणों से भेज दिया गया था। इसके बाद थुंबा से हमें श्रीहरिकोटा में भेज दिया गया। जब हम श्रीहरिकोटा में भेजा गया तो हमारे पास सिर्फ 35000 एकड़ की जमीन थी। उसके अलावा कुछ उपलब्ध नहीं करवाया गया था। हम वहीं टेस्ट किया करते थे।