उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि विशेष अनुमति याचिका का प्रावधान एक संकीर्ण रास्ता माना जाता था, लेकिन अब इसके व्यापक इस्तेमाल के कारण मध्यस्थता प्रक्रिया को नुकसान पहुंच रहा है।
धनखड़ ने मध्यस्थता मामलों में विशेषज्ञों की आवश्यकता पर भी बल दिया और कहा कि वाणिज्यिक विवादों से जुड़े जटिल मामलों को निपटाने में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
यहां मध्यस्थता पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए धनखड़ ने अनुच्छेद 136 के उपयोग एवं मध्यस्थता प्रक्रिया पर इसके प्रभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘अनुच्छेद-136 के तहत हस्तक्षेप को संकीर्ण माना गया था। कुल मिलाकर इसमें सब शामिल हैं कि मजिस्ट्रेट को क्या करना है, सत्र न्यायाधीश को क्या करना है, जिला न्यायाधीश को क्या करना है, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को क्या करना है।’’
संविधान का अनुच्छेद 136 उच्चतम न्यायालय को किसी भी निर्णय या आदेश के विरुद्ध अपील करने के लिए ‘‘विशेष अनुमति’’ प्रदान करने की अनुमति देता है। इसे विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) कहा जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पूरी विनम्रता और इस देश के एक चिंतित नागरिक के रूप में यह सुझाव दे रहा हूं कि जिस मुद्दे पर आप चर्चा कर रहे हैं, वह सूक्ष्म, लघु उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे सरल मध्यस्थता प्रक्रिया चाहते हैं।