Breaking News
-
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने नेतृत्व पर बढ़ते असंतोष के मद्देनजर सोमवार को…
-
बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने सोमवार को अपदस्थ प्रधान मंत्री शेख हसीना और…
-
अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन, विवादित इन्वेस्टर जॉर्ज…
-
अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह से तीन सप्ताह पहले ‘एच-1बी’…
-
स्पेन की नागरिक स्नेहा अपनी जैविक (बायलॉजिकल) मां बनलता दास की तलाश में भारत आई…
-
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने आरोप लगाया कि एक्स प्लेटफॉर्म के मालिक एलन मस्क…
-
बंदूकधारियों ने सोमवार को कब्जे वाले वेस्ट बैंक में इजरायलियों को ले जा रही एक…
-
प्राचीन काल से ही भारत में कई पेड़-पौधों का इस्तेमाल बीमारियों के इलाज के लिए…
-
चीन ने कहा कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले बांध का भारत और बांग्लादेश पर…
-
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान घोषणा की कि संयुक्त…
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय सोमवार को एक याचिका पर फैसला सुनाएगा, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई जिसमें कहा गया है कि केवल बाल ‘पोर्नोग्राफी’ को डाउनलोड करना और उसे देखना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत आने वाला अपराध नहीं है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के फैसला सुनाने की संभावना है।
उच्चतम न्यायालय ने इसके पहले उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई थी, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना और देखना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो)अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है।
मद्रास उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री (पोर्नोग्राफी) डाउनलोड करने के आरोप में 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि इन दिनों बच्चे पोर्नोग्राफी देखने के गंभीर मुद्दे से जूझ रहे हैं और उन्हें दंडित करने के बजाय, समाज को उन्हें शिक्षित करने के लिए ‘पर्याप्त परिपक्व’ होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में दो याचिकाकर्ता संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एच एस फुल्का की दलीलों पर ध्यान दिया था कि उच्च न्यायालय का फैसला इस संबंध में कानूनों के विपरीत था।
वरिष्ठ अधिवक्ता फरीदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रेन अलायंस’ और नयी दिल्ली स्थित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की ओर से पेश हुए। ये दोनों संगठन बच्चों के कल्याण के लिए काम करते हैं। इसके पहले उच्च न्यायालय ने एस हरीश के खिलाफ पॉक्सो कानून-2012 और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया था।