उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने मंगलवार को कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य की जलविद्युत परियोजनाओं पर लगाए गए जल उपकर को वापस लेने की केंद्र सरकार की सलाह का पालन नहीं करेगी, क्योंकि जल राज्य सूची का विषय है और उपकर को एक कानून के तहत लागू किया गया है।
शिमला में संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पहले से ही एक जल उपकर आयोग का गठन करके इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कर चुकी है। अग्निहोत्री ने कहा कि कुछ बिजली उत्पादकों और बिजली बोर्ड ने पहले ही 28 करोड़ रुपये का उपकर चुका दिया है।
संसाधन जुटाने के लिए जलविद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर लगाने की हिमाचल सरकार की पहल में बाधा उत्पन्न हो गई है, क्योंकि केंद्र सरकार ने जल उपकर को अवैध बताते हुए राज्यों से इसे वापस लेने के लिए कहा है।
उपमुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के रुख को पूरी तरह से अनुचित करार देते हुए कहा कि 16 मार्च, 2023 को राज्य विधानसभा द्वारा पारित जलविद्युत उत्पादन अधिनियम-2023 के तहत हिमाचल प्रदेश जल उपकर की संवैधानिक वैधता पर निर्णय न्यायालय द्वारा लिया जाएगा, ना कि केंद्र सरकार द्वारा।
उन्होंने कहा कि जल उपकर आयोग का नाम बदलकर जल आयोग किया जाएगा, जो भविष्य में जल से संबंधित सभी राज्यस्तरीय और अंतरराज्यीय मामलों का निपटारा करेगा। अग्निहोत्री के पास जल शक्ति विभाग भी है।
राज्य की 172 जल विद्युत परियोजनाओं पर बिजली उत्पादन के लिए दोहन किये गये जल की मात्रा का आकलन करके जल उपकर लगाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में राष्टीय जल विद्युत निगम (एनएचपीसी), राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी), भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी), सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल) और इंडिपेंडेंट पावर प्रोड्यूसर्स (आईपीपी) द्वारा संचालित कुल 9,203 मेगावाट बिजली की क्षमता वाली 23 बांध परियोजनाएं हैं। इसके अलावा 1,916 मेगावाट क्षमता वाली छह और परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं।
अग्निहोत्री ने कहा कि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा पत्र लिखने का मकसद बिजली उत्पादकों के बीच भ्रम पैदा करना है। उन्होंने कहा कि केंद्र ने सार्वजनिक क्षेत्र की जलविद्युत कंपनियों को जल उपकर नहीं देने और इस कानून को अदालत में चुनौती देने के लिए कहा है।