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Rajasthan में वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करना BJP के लिए आसान नहीं, महारानी ही दिलाएंगी जीत!

राजस्थान को लेकर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भाजपा इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करेगी। इसका बड़ा कारण यह है कि उसके पास कोई पसंदीदा उम्मीदवार भी नहीं है। अगर अब भी कोई संदेह था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जयपुर में एक रैली में दोहराया, “मैं हर बीजेपी कार्यकर्ता से कहना चाहता हूं कि हमारी पहचान और शान केवल कमल है।” इससे कहीं ना कहीं सभी भाजपा कार्यकर्ताओं को यह संदेश देने की कोशिश की गई कि इस बार पार्टी सामुहिक नेतृत्व पर जोर दे रही है। ऐेसे में सवाल यह है कि वसुंधरा राजे का क्या होगा? फिहलाह ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने दो कार्यकाल की पूर्व मुख्यमंत्री को तीसरी बार पद के लिए दावेदारी से लगभग अलग कर दिया है।
 

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भाजपा इस बात को भी अच्छी तरीके से जानती है कि राजस्थान में चुनाव से पहले वसुंधरा राजे को साइड करना उसके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। वसुंधरा राजे को नजरअंदाज करना राजस्थान में कहीं से भी पार्टी के लिए हितकारी साबित नहीं होने वाला। हाल में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और वरिष्ठ नेता अमित शाह जयपुर में पार्टी की कोर कमेटी की एक बड़ी बैठक में शामिल हुए थे। हालांकि, इस बैठक से पहले दोनों नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ भी अलग मीटिंग की। इस बैठक के बाद दो चीजें हुई। पहली चीज की आलाकमान के सामने वसुंधरा राजे को सीएम का चेहरा बनाने की मांग करने वाले पूर्व विधायक देवी सिंह भाटी की पार्टी में वापसी हो गई। दूसरा यह की वसुंधरा राजे भी सक्रिय दिखाई दे रही हैं। ऐसे में अब यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या वसुंधरा राजे को चुनाव के बाद किसी प्रकार की बात को लेकर आश्वासन दिया गया है?

लेकिन इतना तो तय है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे भाजपा के लिए जरूरी और मजबूरी दोनों है। 70 वर्षीय वसुंधरा राजे के पास सियासत का लंबा अनुभव है। साथ ही राजस्थान की राजनीति की अच्छी समझ है। वसुंधरा लोकसभा और विधानसभा दोनों में ही लगातार चुनाव जीतती रही हैं। 2003 तक बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकारों में उन्होंने अलग-अलग मंत्रालयों को भी संभालना है। 1985 से वह राजस्थान की सियासत में सक्रिय हैं। ऐसे में भाजपा उन्हें दरकिनार नहीं कर सकती। हाल में ही कर्नाटक चुनाव के दौरान हमने देखा था कि किस तरीके से बीएस येदियुरप्पा की अनदेखी करना पार्टी के लिए हानिकारक साबित हो गया। 

इसमें कोई भी दो राय नहीं है कि राजस्थान में भाजपा के भीतर वसुंधरा राजे से बड़ा कोई नेता नहीं है। इसके साथ ही वह राजस्थान के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत के मुकाबले एक बड़ी नेता है। राजस्थान की राजनीति 2003 के बाद से लगातार इन्हीं दोनों नेताओं की इर्द-गिर्द घूमती रही है। वसुंधरा राजे भाजपा की लोकप्रिय नेता भी बनी और उनके नेतृत्व में पार्टी ने चुनाव भी जीता। अभी भी भाजपा की ओर से सीएम चेहरे को लेकर जनता में वसुंधरा राजे सबसे पहली पसंद है। 2018 में भी जब तमाम जगह इस बात के दावे किए जा रहे थे कि इस बार राजस्थान में भाजपा की हालत बेहद खराब है तब भी वसुंधरा राजे ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी थी और भाजपा 73 सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई थी। 

राजस्थान में वसुंधरा राजे को जमीन से जुड़ी हुई नेता बताया जाता है। वैसी नेता है जो लगातार लोगों के बीच रहती हैं। लोगों से मिलती जुलती हैं। संगठन पर भी मजबूत पकड़ रखती हैं और पार्टी को भी साथ लेकर चलती हैं। हालांकि, यह बात भी सच है कि 2018 में मिली चुनावी हार के बाद संगठन पर उनकी पकड़ थोड़ी कमजोर हुई। हालांकि, उन्हें विधायकों का भरपूर साथ मिला। जब से सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, वसुंधरा राजे पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बनाने लगीं। उनकी नाराजगी को देखते हुए पूनिया को हटाकर सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। तब जाकर महारानी सक्रिय दिखाई देने लगे।
 

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हाल में भाजपा ने राजस्थान में परिवर्तन यात्रा निकाला था। परिवर्तन यात्रा को लेकर कई तरह की खबरें आईं। दावा किया गया कि राजस्थान के कई इलाकों में इस यात्रा में भीड़ नहीं जुट पाई। इसको लेकर यह भी कहा गया कि वसुंधरा राजे सक्रिय नहीं थी जिसकी वजह से पार्टी थोड़ी कमजोरी दिखी। वसुंधरा राजे जातिय समीकरण को भी साधने में माहिर है। वह खुद को जाटों की बहू, राजपूत की बेटी और गुर्जरों की समधन रहती हैं। महिला होने की वजह से राज्य की महिलाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। महिलाओं के लिए उन्होंने कई योजनाओं की राजस्थान में शुरुआत की थी। 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा की 60 से 70 सीटों पर वसुंधरा राजे की सीधी पकड़ है। वहीं उन्हें मुस्लिम वोट भी मिलते आ रहे हैं। 

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