गोवा में एससीओ सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आज चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बैठक कर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। गोवा के बीच रिसॉर्ट में जयशंकर की अपने चीनी समकक्ष छिन कांग और रूस के सर्गेई लावरोव के साथ बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हम आपको बता दें कि जयशंकर ने मार्च के पहले सप्ताह में दिल्ली में आयोजित जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक से इतर भी रूस और चीन के विदेश मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय मुलाकात की थी। इस बीच, एससीओ बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी भी गोवा आये हुए हैं लेकिन भारतीय विदेश मंत्री के साथ उनकी किसी द्विपक्षीय मुलाकात का कार्यक्रम नहीं है।
जहां तक चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के साथ जयशंकर की मुलाकात की बात है तो उसके बारे में बताया जा रहा है कि उन्होंने चीन को यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत-चीन संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक कि सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति कायम नहीं होती। इसके अलावा जयशंकर ने रूसी विदेश मंत्री लावरोव के साथ अपनी बैठक के दौरान व्यापार और वाणिज्यिक जुड़ाव पर ध्यान देने के साथ समग्र द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा भी की। हम आपको यह भी बता दें कि चीन के विदेश मंत्री छिन कांग गोवा में एससीओ की बैठक में शिरकत करने के बाद शुक्रवार को दो दिन की पाकिस्तान यात्रा पर रवाना हो जाएंगे।
जयशंकर ने इसके अलावा शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के महासचिव झांग मिंग के साथ भी बातचीत की। बैठक में जयशंकर तथा मिंग ने एससीओ समूह के समग्र एजेंडे पर चर्चा की। जयशंकर ने ट्वीट किया, “सीएफएम में एससीओ के महासचिव झांग मिंग के साथ सार्थक बातचीत के साथ मेरी बैठक शुरू हुई। भारत की एससीओ अध्यक्षता के लिए उनके समर्थन की सराहना करता हूं।” उन्होंने कहा, “भारतीय अध्यक्षता सुरक्षित एससीओ के लिए उसकी प्रतिबद्धता से प्रेरित है। इसके प्रमुख क्षेत्र स्टार्टअप्स, पारंपरिक चिकित्सा, युवा सशक्तिकरण, बौद्ध विरासत और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी हैं जिन पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। गोवा में एक सफल सीएफएम के लिए उत्सुकता है।”
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जहां तक एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक की बात है तो आपको बता दें कि भारत इस दो दिवसीय बैठक की मेजबानी कर रहा है। यह बैठक ऐसे समय में आयोजित हो रही है जब यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस और पश्चिमी देशों में तनातनी है और चीन के विस्तारवादी रवैये को लेकर भी चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं। इस बैठक की अध्यक्षता विदेश मंत्री एस जयशंकर कर रहे हैं जिसमें चीन के विदेश मंत्री छिन कांग, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लॉवरोव, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी आदि शामिल हो रहे हैं। माना जा रहा है कि बैठक में अफगानिस्तान के सम्पूर्ण हालात पर भी चर्चा हो सकती है जिसमें उन चिंताओं पर भी विचार किया जा सकता है कि तालिबान के शासन में यह देश आतंकवाद का पोषण स्थल बन सकता है। इसके साथ ही तेजी से उभरती सुरक्षा स्थिति पर भी चर्चा हो सकती है। एससीओ बैठक की तैयारी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि संगठन में सहयोग बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा के अलावा कारोबार, निवेश, सम्पर्क जैसे विषय प्रमुखता से सामने आयेंगे। समझा जाता है कि आतंकवाद की चुनौतियों के अलावा यूक्रेन युद्ध के प्रभावों पर भी चर्चा हो सकती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत एससीओ सम्मेलन की मेजबानी ऐसे समय में कर रहा है जब पूर्वी लद्दाख सीमा गतिरोध के कारण चीन के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण हैं। सूत्रों ने बताया कि बैठक में विदेश मंत्री वर्तमान भू राजनीतिक संकट की पृष्ठभूमि में क्षेत्र के समक्ष पेश आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करेंगे और सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों का प्रभाव चर्चा पर नहीं पड़ेगा।
बहरहाल, बात पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल की करें तो आपको बता दें कि वह आज दोपहर को गोवा पहुंचे। यह 2011 के बाद से पड़ोसी देश से भारत की पहली ऐसी उच्च स्तरीय यात्रा है। बिलावल भुट्टो जरदारी की यात्रा भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पार आतंकवाद को इस्लामाबाद के निरंतर समर्थन सहित कई मुद्दों पर संबंधों में जारी तनाव के बीच आई है। भारत पहुँचने के बाद उन्होंने कहा कि एससीओ बैठक में भाग लेने के लिए गोवा पहुँच कर खुश हूँ। बिलावल ने अपने आगमन से पहले ट्वीट किया, “गोवा, भारत के रास्ते में हूं। शंघाई सहयोग संगठन की सीएफएम में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी करूंगा। इस बैठक में शिरकत करने का मेरा फैसला एससीओ के चार्टर के प्रति पाकिस्तान की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।” उन्होंने आगे लिखा, “मेरी यात्रा के दौरान, जो विशेष रूप से एससीओ पर केंद्रित है, मैं मित्र देशों के अपने समकक्षों के साथ रचनात्मक चर्चा की उम्मीद करता हूं।”
बहरहाल, एक ओर जहां पाकिस्तान के विपक्षी दल बिलावल की भारत यात्रा को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कह रहे हैं कि बिल्लो रानी को कुछ नहीं पता तो वह वहां जाकर क्या करेंगे तो वहीं भारत में रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों को भी बिलावल की इस यात्रा से कोई ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं।