जम्मू-कश्मीर की विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने शनिवार को विधानसभा चुनाव में देरी को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि केंद्र शासित प्रदेश को ‘दिल्ली से रिमोट कंट्रोल के जरिये नहीं चलाया जा सकता।’’
यहां हुई गोलमेज चर्चा में नेताओं ने रेखांकित किया कि संवाद का महत्व जम्मू-कश्मीर को मौजूदा ‘दलदल’ से निकालने के लिए आम सहमति बनाना है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता एम वाई तारिगामी, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के जम्मू के प्रांतीय अध्यक्ष रतन लाल गुप्ता, नेशनल पैंथर्स पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष हर्षदेव सिंह, शिवसेना-बीएसटी के मनीष सैनी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेता वरिंदर सिंह सोनू और अवामी नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुजफ्फर श्याह ने ‘‘जम्मू-कश्मीर, आगे बढ़ने का रास्ता’ विषय पर आयोजित चर्चा में हिस्सा लिया।
सेंटर फॉर पीस ऐंड प्रोग्रेस द्वारा आयोजित चर्चा में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हुआ।
तारिगामी ने कहा कि जब विधानसभा चुनाव की घोषणा की जाएगी तब भाजपा को जम्मू-कश्मीर के व्याकुल लोगों का सामना करना होगा। उन्होंने कहा कि लोगों को उच्चतम न्यायालय से बहुत उम्मीद है और उनका मानना है कि वह उन्हें न्याय देकर संविधान व्यवस्था को बरकरार रखेगी।
तारिगामी ने कहा, ‘‘बातचीत आम सहमति तक पहुंचने और राजनीतिक अनिश्चितता और कुशासन को समाप्त करने के लिए मिलकर काम करने की कुंजी है ताकि लोगों को राहत मिल सके। जम्मू और कश्मीर विधानसभा (नवंबर) 2018 में भंग कर दी गई थी और नए चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं।’’
पांच अगस्त, 2019 को, केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा वापस ले लिया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया।
केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गई हैं जिनपर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ दो अगस्त से याचिकाओं पर दिन-प्रतिदिन सुनवाई करेगी।
एनपीपी नेता हर्ष देव सिंह ने कहा, ‘‘हम पिछले पांच वर्षों से एक छद्म शासन के गवाह हैं, जिसे समाप्त करने की आवश्यकता है। जम्मू-कश्मीर को दिल्ली से रिमोट कंट्रोल के माध्यम से नहीं चलाया जा सकता है।’’
नेकां नेता रतन लाल गुप्ता ने दावा किया कि जम्मू-कश्मीर के लोग जवाबदेही, बुनियादी सुविधाओं की कमी, मुद्रास्फीति और बढ़ती बेरोजगारी से बेहद परेशान हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अगस्त 2019 से पहले की स्थिति और एक लोकप्रिय सरकार की बहाली जम्मू-कश्मीर के समग्र विकास की कुंजी है।’’
मनीष सैनी ने आरोप लगाया, ‘‘भाजपा की जम्मू-कश्मीर नीति दिशाहीन है और अगस्त 2019 के बाद उसके सभी दावे छलावा साबित हुए हैं। नार्को-आतंकवाद एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है और बड़ी संख्या में युवा इसका शिकार हो रहे हैं। कश्मीरी पंडित अभी भी घाटी में अपनी वापसी का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि सरकार उनके लिए सुरक्षित माहौल बनाने में विफल रही है।’’
मुजफ्फर शाह ने आरोप लगाया कि भाजपा पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए संसद में विधेयक लाकर गुज्जरों और बकरवालों को पहाड़ी समुदाय के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रही है। सेंटर फॉर पीस एंड प्रोग्रेस के अध्यक्ष ओपी शाह ने कहा कि चर्चा का निष्कर्ष यह है कि केंद्र शासित प्रदेश के जम्मू और कश्मीर संभाग के लोगों को संविधान पर पूरा भरोसा है।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’से कहा, ‘‘वे (विधानसभा में देरी) चुनाव, राज्य का दर्जा बहाल करने के बारे में बात कर रहे हैं और उच्चतम न्यायालय के (अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर)फैसले का इंतजार कर रहे हैं।