तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख और राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव लगातार मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए भावनाओं का सहारा ले रहे हैं। केसीआर का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से है। 2018 में जहां केसीआर ने ज्यादातर सरकारी योजनाओं का चुनावी प्रचार में जिक्र किया था तो वहीं इस बार वह भावनाओं पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। इसका बड़ा कारण कर्नाटक में कांग्रेस की जीत है। कर्नाटक में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस तेलंगाना में पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में है।
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तेलंगाना राज्य आंदोलन का चेहरा रहे केसीआर अपने अभियान अभियान की शुरुआत के बाद से लगातार क्षेत्रीय गौरव का मुद्दा उठा रहे हैं, जिसमें राज्य भर में 41 रैलियां शामिल हैं। पहली बैठक में, महबूबनगर के पलामुरू में, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने याद किया कि कैसे राज्य आंदोलन के दौरान, उन्होंने लोगों की दुर्दशा का पता लगाने के लिए जिले के हर कोने का दौरा किया था। उन्होंने कहा कि आज हमने विकास के साथ पलामुरू को सोने की खान में बदल दिया है। कांग्रेस पर भरोसा मत करो। अगर कांग्रेस जीती तो तेलंगाना में तबाही मच जाएगी
केसीआर ने कहा कि तेलंगाना कई लोगों के बलिदान से बना है, और लोगों को अपने स्वयं के आमरण अनशन आंदोलन के बारे में याद दिलाया। उन्होंने दिवंगत तेलंगाना विचारक के जयशंकर का भी जिक्र किया और कहा कि प्रोफेसर के सुझाव पर ही उन्होंने महबूबनगर से चुनाव लड़ा था। उन्होंने कहा कि महबूबनगर जिला भूख और सूखे का सामना कर रहा था, और हम पीड़ा देखकर रो पड़े। जिले में कृष्णा नदी बहने के बावजूद, आंध्र के शासकों ने चालें चलीं…बिना किसी प्रगति के शिलान्यास किया।
इस बैठक में और उसके बाद की चार अन्य बैठकों में, केसीआर के संदेश का सार यह है कि, यदि कांग्रेस सत्ता में आती है, तो तेलंगाना “बर्बाद” हो जाएगा, और राज्य आंदोलन से जो कुछ भी हासिल किया गया था, वह खो जाएगा। केसीआर ने एक बैठक में कहा, “अगर कांग्रेस आई तो आपको बिजली नहीं मिलेगी… रायथु बंधु और दलित बंधु को खत्म कर दिया जाएगा।” सिद्दीपेट में, जहां सीएम चाय पीने के लिए सड़क किनारे एक ढाबे पर रुके थे – जैसा कि राहुल गांधी ने अपने हालिया चुनावी दौरे के दौरान रोका था – केसीआर ने कहा कि अगर तेलंगाना एक “मॉडल राज्य” है, तो सिद्दीपेट “उसका नेता”। उन्होंने कहा कि हमारा मानना था कि जब तक हम सत्तारूढ़ पार्टी को उखाड़ नहीं फेंकते और तेलंगाना को आज़ाद नहीं करा लेते, तब तक इस ज़मीन के साथ कोई न्याय नहीं होगा।
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इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस बार तेलंगाना में लड़ाई दिलचस्प होती दिखाई दे रही है। बीआरस को कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा से भी टक्कर मिल रही है। राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा रखने वाले केसीआर ने कुछ महीने पहले ही अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति किया था। हालांकि, इस बार के चुनाव में वह पूरी तरीके से तेलंगाना मॉडल का ही जिक्र कर रहे हैं। उन्हें इस बात का अच्छे से आभास है कि तेलंगाना के बलबूते ही वह राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ को मजबूत कर सकेंगे। अगर तेलंगाना उनके हाथ से निकल गया तो उनके लिए राजनीति के दरवाजे बंद भी हो सकते हैं। यही कारण है कि वह पूरी तरीके से खुद को तेलंगाना पर फोकस रखने की कोशिश कर रहे हैं।
तेलंगाना में भाजपा कांग्रेस केसीआर सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश में है। दूसरी ओर केसीआर की ओर से भी पलटवार किया जा रहा है। हर पार्टी के अपने-अपने दावे हैं। लेकिन उन दावों पर जनता कितना विश्वास कर पाती है, यह तो चुनावी नतीजे में ही पता चल पाएगा। यही तो प्रजातंत्र है।