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केरल की अदालत ने अलुवा में बच्ची से दुष्कर्म व हत्या मामले में दोषी को मौत की सजा सुनाई

केरल के अलुवा में बच्ची से दुष्कर्म व उसकी हत्या के 110 दिनों बाद, यहां एक विशेष अदालत ने मंगलवार को मामले में दोषी करार दिये गए एक प्रवासी मजदूर को मौत की सजा सुनाई।
अदालत ने कहा कि दोषी ‘‘बच्चों के प्रति कामुकता की भावना रखने वाला’’ व्यक्ति है और यदि कभी रिहा किया गया तो वह बच्चियों के लिए खतरा बन सकता है, जिनमें अजन्मी बच्चियां भी शामिल हैं।
अदालत ने इस अपराध को ‘‘अत्यधिक यौन हिंसा का शैतानी कृत्य’’ करार दिया, जो सुनियोजित थी और हत्या के साथ खत्म हुई। इसने कहा कि इसे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि मामला दुलर्भ में दुर्लभतम है जिसमें विशेष कारण दोषी को मौत की सजा सुनाने के लिए उपलब्ध हैं।
विशेष पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) अदालत के न्यायाधीश के. सोमन ने कहा कि पांच वर्षीय बच्ची का अपहरण किया गया, उसे जबरन शराब पिलाई और उसके साथ कई बार बलात्कार, अप्राकृतिक यौनाचार किया गया तथा हत्या के बाद उसके शव को कूड़े में छिपाने से पहले उसे विरूपित किया गया था।

अदालत ने कहा कि दोषी अशफाक आलम (28) के पूरे कृत्य से ‘‘क्रूर आपराधिकता के घटनाक्रम’’ का खुलासा होता है।
न्यायाधीश ने खचाखच भरे अदालत कक्ष में घोषणा की कि आलम को फांसी दी जाए। आलम बिहार का रहने वाला है और बच्ची भी उसी राज्य की रहने वाली थी।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 302 के तहत, आरोपी को फांसी की सजा दी जाती है और मैं निर्देश देता हूं कि उसे फांसी से लटकाया जाए।’’
फैसले का मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, उनके कैबिनेट सहकर्मियों, विपक्ष और समाज ने स्वागत किया।
अदालत ने कहा, ‘‘आरोपी की क्रूर प्रवृत्ति और मानव जीवन के प्रति उसकी पूर्ण उपेक्षा, हमले के तरीके और शव पर आई चोटों की प्रकृति से स्पष्ट होती है।’’

अदालत ने कहा कि इस घटना न केवल समाज के सामूहिक अंत:करण को झकझोरा है बल्कि समाज में एक डर की भावना भी महसूस कराई।
न्यायाधीश ने आदेश में, दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा–“समाज का असली चरित्र इससे जाहिर होता है कि यह अपने बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करता है।’’
अदालत ने कहा कि जैसा कि विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) ने दलील दी है कि अगर दोषी को समाज का हिस्सा बनने दिया गया तो वह बच्चियों के लिए खतरा होगा, जिनमें वे बच्चियां भी शामिल हैं जिनका अभी जन्म तक नहीं हुआ है।
न्यायाधीश ने अपने 197 पृष्ठों के फैसले में कहा, ‘‘उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मेरा विचार है कि यदि आरोपी को कानून के तहत निर्धारित अधिकतम सजा नहीं दी गई तो यह अदालत अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में असफल हो जाएगी।’’

न्यायाधीश ने दोषी को विभिन्न आरोपों के लिए आजीवन कारावास की पांच सजा भी सुनाईं।
इसके अलावा, अदालत ने उसे विभिन्न अपराधों के लिए एक साल से 10 साल तक की विभिन्न अवधि की जेल की सजा भी सुनाई।
अदालत ने कहा कि दोषी पहले विभिन्न अवधि की जेल की सजा काटेगा और इसके बाद आजीवन कारावास शुरू होगा, जो उसके मृत्युपर्यंत जारी रहेगा।
लोक अभियोजन जी. मोहन राज ने कहा कि मौत की सजा का क्रियान्वयन केरल उच्च न्यायालय से इसकी पुष्टि होने पर निर्भर करता है।
अदालत ने दोषी पर 7.3 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि बाल दिवस पर मामले में दी गई सजा को बच्चों के खिलाफ हिंसा करने वालों के लिए कड़ी चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) एम.आर. अजित कुमार ने भी दोषी को दी गई सजा पर संतोष व्यक्त किया।
सजा सुनाए जाने के बाद अदालत के बाहर कुमार ने संवाददाताओं से कहा कि यह एक ऐसा मामला था जिसने केरल की अंतरात्मा को झकझोर दिया और सरकार शुरू से ही दोषी के लिए अधिकतम सजा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध थी।
अधिकारी ने कहा, ‘‘यह दुर्लभतम मामलों में से एक है और अभियोजन पक्ष इसे सफलतापूर्वक साबित करने में सक्षम रहा। जांच 30 दिनों में पूरी की गई। घटना के 100वें दिन आरोपी को दोषी ठहराया गया और आज 110वां दिन है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली की मजबूती को दिखाता है।’’
बच्ची का 28 जुलाई को उसके किराए के घर से अपहरण कर लिया गया था और फिर दुष्कर्म के बाद गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी गई थी। बच्ची का शव पास के अलुवा में एक स्थानीय बाजार के पीछे दलदली इलाके में फेंक दिया गया था। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर दोषी को गिरफ्तार किया गया था।

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