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केरल के राज्यपाल ने वित्त मंत्री से पद पर बने रहने की कृपा वापस लेने के फैसले का बचाव किया

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने प्रदेश के वित्त मंत्री के एन बालगोपाल द्वारा पिछले साल अन्य राज्यों के लोगों के खिलाफ की गई टिप्पणी को लेकर उनसे पद पर बने रहने की कृपा वापस लेने के अपने कदम को शुक्रवार को जायजा ठहराया।
खान ने कहा कि मंत्री से पद पर बने रहने की कृपा वापस लेने का मतलब उनकी बर्खास्तगी नहीं है।
उन्होंने कहा कि वह अभी भी दृढ़ता से मानते ​​हैं कि अगर कोई व्यक्ति जिसने भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने की शपथ ली है, वह सार्वजनिक रूप से कहता है कि जो लोग देश के एक विशेष क्षेत्र से आते हैं, उन्हें दूसरे राज्य की शिक्षा प्रणाली की समझ नहीं हो सकती है, तो यह शपथ का उल्लंघन है।
खान ने कोच्चि में संवाददाताओं से कहा, “इसलिए, नाखुशी की अभिव्यक्ति अलग बात है… उस अर्थ में यह थी। क्योंकि मेरी राय में ऐसा हुआ था।

(लेकिन) मुख्यमंत्री ने इसे शपथ का उल्लंघन नहीं माना, ऐसे में वह मंत्री पद पर बरकरार हैं।”
खान केरल सरकार से जारी खींचतान के बीच पिछले साल अक्टूबर में उठाए गए कदम को लेकर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे।
बालगोपाल से पिछले साल मंत्री पद पर बने रहने की कृपा वापस लेने के कदम पर उन्होंने कहा कि कृपा वापसी का मतलब बर्खास्तगी नहीं है।
मंत्री बालगोपाल ने पिछले साल एक जनसभा में कथित तौर पर कहा था कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से आने वाले लोगों को केरल के विश्वविद्यालयों को समझने में मुश्किल हो सकती है।
इस टिप्पणी के मद्देनजर खान ने मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को पत्र लिखकर बालगोपाल पर एकता को नुकसान पहुंचाने वाला भाषण देने का आरोप लगाया था और कहा था कि उन्होंने मंत्री पद पर बने रहने की ‘‘कृपा खो दी है।’’

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से अपने मंत्रिमंडल सहयोगी के खिलाफ संवैधानिक रूप से उचित कदम उठाने का अनुरोध भी किया था, जिसे विजयन ने ठुकरा दिया था।
उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164(1) कहता है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल की सलाह पर की जाएगी और राज्यपाल मुख्यमंत्री की सिफारिश पर ही किसी मंत्री की मंत्रिपरिषद में नियुक्ति या बर्खास्तगी कर सकते हैं। यही नहीं, कोई मंत्री राज्यपाल की कृपा तक पद पर बना रह सकता है।

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