राजस्थान में हाड़ौती क्षेत्र हमेशा से भाजपा का गढ़ रहा है। इसके दोनों दिग्गज नेता यानी राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत और वसुंधरा राजे इसी क्षेत्र से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। शेखावत ने पहली बार 1977 में छबड़ा सीट जीती थी और राजे 20 साल से झालरापाटन का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इस चुनाव में भी भाजपा को इस क्षेत्र में बढ़त मिलती दिख रही है, जिसमें कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़ जैसे जिलों में फैली 17 विधानसभा सीटें हैं। हालाँकि, राज्य के अन्य क्षेत्रों की तरह मतदाताओं में कोई स्पष्ट उत्साह नहीं है और न ही कोई स्पष्ट लहर है। इसके दो कारण हैं। एक तो मौजूदा सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ ज़मीन पर गुस्से का न होना बल्कि, उनकी सरकार की योजनाओं और सामाजिक न्याय पहलों की व्यापक सराहना हो रही है, भले ही कांग्रेस सहित मौजूदा विधायकों के प्रति नाराजगी हो। दूसरा कारण राज्य भाजपा में राजे के चेहरे को लेकर अनिश्चितता है।
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झालरापाटन राज्य के हर कस्बे से आगे
झालरापाटन में सद्गुरु कबीर आश्रम के पुजारी रामबाबू रेलवे लाइन, मेडिकल कॉलेज, क्रिकेट स्टेडियम, बस डिपो जैसी सभी स्थानीय विकास परियोजनाओं का श्रेय भी राजे को देते हैं। वह कहते हैं कि उनकी वजह से ही झालरापाटन राज्य के हर कस्बे से आगे है। एक गृहिणी सोनिया सैनी इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहती हैं कि मेरे गांव में हर कोई उसके बारे में बात करता है। उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों के कारण हमारा शहर ऐसा दिखता है। हम महिलाओं के लिए भी वह अच्छी रहेंगी। दारा स्टेशन के एक छोटे व्यवसायी राकेश मीना बताते है कि वो हमारे लिए सब कुछ हैं। राजे भाजपा में एकमात्र नेता हैं जो अब तक सीएम पद के लिए दावा कर सकती हैं।
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कांग्रेस की जीत में भी बीजेपी का प्रदर्शन रहा अच्छा
राजे स्पष्ट रूप से इस क्षेत्र में सबसे बड़ी भाजपा नेता बनी हुई हैं। उनकी निर्णय लेने की क्षमता और मजबूत नेतृत्व के लिए सराहना की जाती है, जिसमें उनकी शाही वंशावली एक एक्सट्रा प्लस प्वाइंट है। जब राज्य के अन्य हिस्सों ने कांग्रेस को वोट किया था, उस वक्त भी राजे के समर्थन से भाजपा को हाड़ौती क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने में मदद मिली थी। 2018 में जब कांग्रेस सत्ता में आई तो उसने यहां से 7 सीटें जीतीं, लेकिन बीजेपी को फिर भी 10 सीटें हासिल हुई थी। कोटा में गहलोत सरकार की 1,200 करोड़ रुपये की हेरिटेज चंबल रिवर फ्रंट परियोजना एक तरह से कांग्रेस इस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। राकेश मीना जैसे कुछ राजे समर्थकों का मानना है कि भाजपा जो चाहे कहे, लेकिन सब कुछ चुनाव के बाद के परिदृश्य पर निर्भर करता है। वे कहते हैं कि हम जानते हैं कि वो बीजेपी नेतृत्व की पसंदीदा नहीं हैं, लेकिन चुनाव के बाद उनमें खेल बदलने की क्षमता है।
अन्य नामों की भी चर्चा
कई नाम चर्चा में हैं, जिन्हें अलग-अलग बीजेपी खेमों ने आगे बढ़ाया है क्योंकि सर्वेक्षणों में पार्टी को जीतने की अच्छी संभावना बताई गई है। बाबा बालकनाथ और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत के नाम की भी चर्चा सामने आई। लेकिन बालकनाथ को अपनी सीट (तिजारा) जीतनी होगी। वो कठिन समय से गुजर रहे हैं और अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में प्रचार भी नहीं कर सकते। जबकि शेखावत चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं।