कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता चली गयी क्योंकि उन्हें आपराधिक मानहानि के मामले में सूरत की एक स्थानीय अदालत ने दोषी पाते हुए दो साल की सजा सुनाई। इस फैसले से जहां कांग्रेस नाराज हो गयी है वहीं भाजपा ने इस फैसले का स्वागत किया है। इस फैसले की पृष्ठभूमि में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अपीलीय अदालत उनकी दोष सिद्धि और दो साल की सजा को निलंबित कर देती है, तो वह लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं होंगे। विधि विशेषज्ञ इस मामले में उच्चतम न्यायालय के वर्ष 2013 और 2018 के फैसलों का हवाला दे रहे हैं। विधि विशेषज्ञों का कहना है कि सांसदों/विधायकों के लिए जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत अयोग्यता से बचने के वास्ते सजा का निलंबन और दोषी करार दिए जाने के फैसले पर स्थगनादेश आवश्यक है। हालांकि लोकसभा सचिवालय ने अदालत के आदेश का अध्ययन करने के बाद राहुल गांधी को अयोग्य करार दे दिया और इस संबंध में अधिसूचना जारी कर संसद के निचले सदन में रिक्ति की घोषणा कर दी।
इस फैसले का कांग्रेस विरोध कर रही है लेकिन विधि विशेषज्ञों का कहना है कि सजा का ऐलान होने के साथ ही अयोग्यता प्रभावी हो जाती है। राहुल गांधी अपील करने के लिए स्वतंत्र हैं और अगर अपीलीय अदालत दोष सिद्धि और सजा पर रोक लगा देती है, तो अयोग्यता भी निलंबित हो जाएगी। हम आपको यह भी बता दें कि सजा पूरी होने या सजा काटने के बाद अयोग्यता की अवधि छह साल की होती है। अगर राहुल गांधी अयोग्य घोषित कर दिए गए तो अयोग्यता आठ साल की अवधि के लिए होगी। अयोग्य घोषित किया गया व्यक्ति न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही उस समयावधि में मतदान कर सकता है। अयोग्यता अकेले दोष सिद्धि से नहीं, बल्कि सजा के कारण भी होती है। इसलिए, अगर निचली अदालत द्वारा ही सजा को निलंबित कर दिया जाता है, तो इसका अर्थ है कि उनकी सदस्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
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हम आपको यह भी बता दें कि 2013 के लिलि थॉमस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8(4) को खारिज कर दिया था, जो दोषी सांसद/विधायक को इस आधार पर सत्ता में बने रहने का अधिकार देता था कि अपील तीन महीने के भीतर दाखिल कर दी गई है। कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को दरकिनार करने के लिए उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को पलटने का प्रयास किया था। लेकिन उस दौरान राहुल गांधी ने ही संवाददाता सम्मेलन में इस अध्यादेश का विरोध किया था और विरोध स्वरूप इसकी प्रति फाड़ दी थी। जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के मुताबिक, दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने वाला व्यक्ति ‘‘दोष सिद्धि की तिथि’’ से अयोग्य हो जाता है और सजा पूरी होने के छह साल बाद तक अयोग्य रहता है। जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान आठ में उन अपराधों का जिक्र है, जिनके तहत दोष सिद्धि पर सांसद/विधायक अयोग्य हो जाएंगे।