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अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है, जिसके बाद आम जनता के लिए मंदिर में भगवद दर्शन भी खुल गए है। 23 जनवरी को लगभग तीन लाख लोगों ने पहले ही दिन रामलला के दर्शन किए है। रामलला की मूर्ति को देख भक्त भावविभोर हो रहे है। कृष्णशिला यानी ब्लैक स्टोन से बनी इस मूर्ति की खासियत है कि इस मूर्ति में एक बच्चे के भाव भी हैं और भगवान का रुप भी है। दोनों का ही संयोजन लिए ये मूर्ति देश भर के राम भक्तों को लुभा रही है।
मंदिर में स्थापित हुई इस मूर्ति को मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगिराज ने बनाया है। उनकी पत्नी ने बताया है कि रामलला की मूर्ति को अरुण योगिराज ने आखिरकार कैसे जीवंत किया है। अरुण योगिराज की पत्नी विजेता ने मीडिया को बताया कि रामलला की मूर्ति के कई तकनीकि पहलू भी है। उन्होंने कहा कि अरुण योगिराज के हाथों में जादू है, जिसका नतीजा है कि रामलला की बेहद मोहक छवि उभरकर मूर्ति के रूप में सामने आई है। उन्होंने कहा कि ये अरुण योगिराज के हाथों का कमाल और जादू ही है। हमें बताया गया था कि मूर्ति कैसी दिखनी चाहिए। इस मूर्ति को योगीराज ने अपनी कल्पना से ही जीवंत किया है।
ट्रस्ट के थे ये मानक
– मुस्कुराता चेहरा
– दैवीय छवि
– पांच वर्षीय बच्चे का स्वरुप
– युवा राजकुमार की छवि
ऐसे सफल हुए योगिराज
इस मूर्ति को बनाने से पहले अरुण योगीराज ने रामलला की मूर्ति की कल्पना की थी। उन्होंने कागज पर मूर्ति को स्केच कर उतारा था। रामलला का चेहरा, आंखे, नाक, गाल, होंठ, ठुड्डी आदि को बनाया गया था। योगीराज ने हर पहलू को शिल्पशास्त्र को ध्यान में रखते हुए बनाया था। योगीराज ने इस मूर्ति को साकार और जीवंत रुप देने से पहले कई किताबें पढ़ीं जो कि मनुष्य के हावभाव और शारीरिक संरचना को समझने में मदद करते है। इन किताबों को विस्तार से पढ़ने के बाद ही योगीराज ऐसी मूर्ति बनाने में सफल हुए जो भगवान राम के बाल रूप को दिखाती है।
बता दें कि मूर्ति बनाने के लिए सिर्फ किताबों का ही सहारा नहीं लिया बल्कि वो कई ऐसे बच्चों से भी मिले जिनकी उम्र पांच वर्ष की थी ताकि उनके हाव भाव को देख सकें। बच्चों की मुस्कान, आंखों और हावभाव को बारिकी से उन्होंने देखा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही योगीराज ने रामलला की मूर्ति का निर्माण किया है।
जानकारी के लिए बता दें कि योगीराज ने मूर्ति बनाने के लिए कुछ आधुनिक सॉफ्टवेयर की भी मदद ली थी। मूर्ति का निर्माण होने के बाद उसे तराशना भी बेहद मुश्किल और महत्वपूर्ण कार्य था। मूर्ति को पूरी तरह से हाथों की मदद से ही तराशा गया है। उन्होंने हाथों, हथौड़ी और छेनी की मदद से ही मूर्ति को भगवान का स्वरूप दे दिया है।
रामलला की मूर्ति एक पांच वर्षीय बालक के स्वरूप में है। इस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच की है। मूर्ति की लंबाई 51 इंच की है, जिसके पीछे भी खास कारण है। दरअसल मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच इसलिए रखी गई है क्योंकि रामनवमी के दिन दोपहर के समय सूर्य की किरणें रामलला के माथे पर पड़ सके। हर राम नवमी पर रामलला के माथे पर सूर्य का तेज भी होगा। बता दें कि गर्भगृह में स्थापित मूर्ति की लंबाई आठ फीट की है। इस प्रतिमा का वजन 200 किलोग्राम का है।