विपक्षी गठबंधन के नेता इस बात का दावा लगातार व्यक्त कर रहे हैं कि हम भाजपा के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। उनकी ओर से यह भी कहा जा रहा है कि 450 सीटों पर हम साझा उम्मीदवार उतारेंगे। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनमें एक दूसरे पर विश्वास की कमी है। इसके अलावा जिस तरीके के मौजूदा हालात हैं उसमें बड़ा सवाल यह भी है कि सीट बंटवारे का फार्मूला निकलेगा कैसे? पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टी पहले ही कह चुकी है कि वह तृणमूल से गठबंधन नहीं करेगी। विपक्षी गठबंधन में यह दोनों दल एक साथ है। लेकिन चुनावी मैदान में अलग-अलग उतरने की बात कर रहे हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी एक साथ दिखाई दे रही हैं लेकिन दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में पार्टी के नेता एक दूसरे पर हमलावर हैं। यहां भी विश्वास की कमी है। इन सबके बीच महाराष्ट्र की राजनीति में भी भूचाल आया हुआ है। शरद पवार को लेकर कांग्रेस के भीतर अविश्वास की स्थिति साफ तौर पर दिखाई दे रही है।
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महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के लिए वर्तमान में सहज स्थिति नहीं है। इंडिया गठबंधन की नींव पड़ने के बाद इसे सबसे बड़ा झटका तब लगा जब वरिष्ठ नेता शरद पवार की पार्टी दो हिस्सों में बंट गई थी। अजित पवार कुछ नेताओं के साथ शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल हो गए और उपमुख्यमंत्री बन गए। हालांकि, शरद पवार लगातार इसका विरोध करते रहे हैं। हाल के दिनों में शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के बीच कई बैठक हुई है। इसी बैठक को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने यह दावा कर दिया कि अजित पवार शरद पवार को बीजेपी के ऑफर के बारे में लगातार बता रहे हैं। इसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण का भी नाम शामिल है। महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं के मुताबिक भाजपा अजित पवार के जरिए शरद पवार को दो ऑफर दे रही है। एक ऑफर यह है कि या तो वह केंद्र में कृषि मंत्री बन जाए या फिर नीति आयोग के चेयरमैन का पद का ऑफर है। इसके अलावा दूसरे ऑफर की बात करें तो उसको लेकर दावा किया गया कि सुप्रिया सुले को केंद्र में और जयंत पाटिल को राज्य में मंत्री बनाया जाएगा। हालांकि, कांग्रेस नेताओं की ओर से दावा भी किया जा रहा है शरद पवार ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
एनसीपी ने क्या कहा
दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं इस तरह के दावे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति तेज हो गई है। एनसीपी के वरिष्ठ नेता और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने साफ तौर पर कहा कि बीजेपी की ओर से उन्हें किसी भी तरह का ऑफर नहीं मिला है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के नेता चाहे कुछ भी बोल रहे हो लेकिन मैं व्यक्तिगत रूप से मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी जैसे नेताओं से लगातार संपर्क में हूं। वहीं, शरद पवार ने स्पष्ट किया कि बैठक गुप्त नहीं थी और परिवार के सबसे वरिष्ठ के रूप में, वह अपने परिवार के सदस्यों से मिल सकते हैं। हालांकि, महाराष्ट्र कांग्रेस ने पूछा कि परिवार के सदस्यों को कहीं और मिलने की आवश्यकता क्यों है। दूसरी ओर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना भी इससे बहुत ज्यादा सहमत नहीं है। उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना के बड़े नेता संजय राउत ने कहा कि अजित पवार अभी इतने बड़े नहीं हुए हैं कि वे शरद पवार के पास ऑफर लेकर जाएं। उन्होंने कहा कि अजित पवार जो कुछ भी है वह शरद पवार की वजह से ही हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच की जंग कम होने का नाम नहीं ले रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित लगातार आम आदमी पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। उन्होंने आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि वे इंडिया गठबंधन में डर की वजह से शामिल हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि कांग्रेस दिल्ली में सभी 7 सीटों पर लड़ने को तैयार है। कांग्रेस को किसी से भी गठबंधन की जरूरत नहीं है। संदीप दीक्षित दिल्ली को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए विदेश का भी लगातार समर्थन करते रहे हैं। दिल्ली कांग्रेस के नेता खुलकर केजरीवाल के खिलाफ बोलते दिखाई दे रहे हैं। वहीं, पंजाब में भी कांग्रेस के नेता साफ तौर पर आम आदमी पार्टी से किसी भी तरह के गठबंधन के खिलाफ हैं। उनका दावा है कि हम सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे।
बड़ा सवाल यह भी है कि इंडिया गठबंधन का पीएम पद का उम्मीदवार कौन होगा? बेंगलुरु बैठक के दौरान कांग्रेस ने कहा था कि उसे पद की चिंता नहीं है। लेकिन कहीं ना कहीं कांग्रेस लगातार राहुल गांधी को प्रमोट करने में जुटी हुई है। लेकिन सबसे ज्यादा दो नेता इंडिया गठबंधन में पीएम पद को लेकर अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने साफ तौर पर कहा कि इंडिया गठबंधन में कई सारे नेता पीएम बनने के लायक है। लेकिन ममता बनर्जी बेहतर उम्मीदवार हैं। दूसरी ओर राजद के वरिष्ठ नेता भाई विरेंद्र ने दावा कर दिया कि बिहार से ही प्रधानमंत्री बनना चाहिए और ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सबसे अच्छे उम्मीदवार हो सकते हैं।
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रिश्तो की नींव विश्वास की डोर पर रहती है। अगर एक दूसरे पर विश्वास ना हो तो रिश्ता कमजोर रहता है और कितने दिन तक चल पाएगा, इसको लेकर भी असमंजस की स्थिति बरकरार रहती है। फिलहाल 26 दलों के नेता एक मंच पर आकर भाजपा के खिलाफ लड़ाई की बात तो कर रहे हैं लेकिन जमीन पर यह नेता एक दूसरे से कितने मिल पाए हैं, यह बड़ा सवाल है। 26 दलों का गठबंधन जनता के हित में कितना है और नेताओं के हित में कितना है, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि जनता सब कुछ जानने और समझने के बाद ही अपना फैसला करती है। यही तो प्रजातंत्र है।