भारत के विधि आयोग ने बाल यौन शोषण कानून के तहत सहमति की उम्र को घटाकर 16 साल करने के खिलाफ सिफारिश की है, लेकिन एक संशोधन का प्रस्ताव दिया है, जो अदालतों को उन मामलों में कम सजा देने की अनुमति देगा जहां किशोर किसी महिला के साथ सहमति से यौन संबंध बनाते हैं। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम वर्तमान में नाबालिग के यौन उत्पीड़न के लिए न्यूनतम 10 साल की जेल की सजा निर्धारित करता है।
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अवस्थी ने कानून मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में कहा कि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रितु राज की अध्यक्षता वाले आयोग ने कहा, 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के किशोर अभी भी बच्चे बने हुए हैं, जिन्हें कानून के उच्च संरक्षण का आनंद लेना चाहिए और सहमति की उम्र को कम करके या सीमित अपवाद पेश करके परेशान नहीं किया जा सकता है। पैनल की सिफारिश पॉक्सो के तहत सहमति की उम्र पर चल रही बहस के बीच आई है। पिछले कुछ वर्षों में कई उच्च न्यायालयों ने चिंता व्यक्त की है कि बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के लिए बनाए गए 2012 के कड़े कानून के तहत किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध माना जा रहा है।
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कानून मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल को लिखे अपने पत्र में पैनल के अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने नवंबर 2022 में कर्नाटक उच्च न्यायालय से प्राप्त एक संदर्भ के बाद प्रासंगिक प्रावधानों का अध्ययन करने की कवायद शुरू की, जिसमें सहमति की उम्र पर पुनर्विचार की सिफारिश की गई थी। बढ़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए। 16 वर्ष से अधिक उम्र के लड़के के साथ प्यार में पड़ना, भाग जाना और यौन संबंध बनाना। जिसके कारण पोक्सो के मामले सामने आए। पोक्सो अधिनियम को उसके वर्तमान स्वरूप में लागू करना। वैधानिक मामलों में घोर अन्याय का कारण बनता है।