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LGBTQIA+ कम्युनिटी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की अवमानना याचिका, केंद्र और राज्यों ने किया निर्देशों का उल्लंघन

एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना ​​याचिका दायर की है जिसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्र और राज्यों ने 2014 एनएएलएसए फैसले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन किया है। केंद्र ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ में शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का अनुपालन न करने का आरोप लगाने वाली एक अवमानना ​​याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केवल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित ट्रांसजेंडर व्यक्ति ही आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। 

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इस ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस केएस राधाकृष्णन और एके सीकरी की पीठ ने न केवल पुरुष-महिला बाइनरी के बाहर लिंग पहचान को मान्यता दी और ‘तीसरे लिंग’ को कानूनी मान्यता और सुरक्षा प्रदान की, बल्कि अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को उनके अधिकारों की प्राप्ति के लिए तंत्र विकसित करने का भी निर्देश दिया, जिसमें उन्हें सकारात्मक कार्रवाई के लाभ भी शामिल हों। फैसले में कहा गया है, “हम केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देते हैं कि वे उन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों के रूप में मानने के लिए कदम उठाएं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सार्वजनिक नियुक्तियों के मामलों में सभी प्रकार के आरक्षण का विस्तार करें। 

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इस साल की शुरुआत में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों ने एक अवमानना ​​याचिका दायर करके शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कोई आरक्षण नीति नहीं बनाई गई है। सकारात्मक कार्रवाई के संबंध में निर्देशों के गैर-कार्यान्वयन ने, विशेष रूप से, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की आजीविका और शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को संबंधित अधिकारियों द्वारा पहचान प्रमाण पत्र प्रदान नहीं किए जा रहे हैं और सामाजिक कलंक के कारण उन्हें कोई भी रोजगार प्राप्त करना बहुत कठिन लगता है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मार्च में अवमानना ​​याचिका में नोटिस जारी किया और केंद्र सरकार के साथ-साथ सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से जवाब मांगा।

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