मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि एक पत्नी अपने पति द्वारा खरीदी गई संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी की हकदार है और कहा कि उसके द्वारा निभाई गई कई भूमिकाओं को पति की 8 घंटे की नौकरी से कम नहीं आंका जा सकता है। न्यायमूर्ति कृष्णन रामासामी ने हाल ही में एक संपत्ति विवाद पर आदेश दिया, जिसमें मूल अपीलकर्ता, शामिल थी, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। उन्होंने संपत्ति पर स्वामित्व का दावा किया, साथ ही आरोप लगाया कि वह विवाहेतर संबंध में भी शामिल थीं। बाद में उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चों को मामले में शामिल किया गया।
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न्यायाधीश ने कहा कि प्रतिवादी महिला एक गृहिणी है, हालांकि उसने कोई प्रत्यक्ष वित्तीय योगदान नहीं दिया, लेकिन उसने बच्चों की देखभाल, खाना बनाना, सफाई करना और परिवार के दैनिक मामलों का प्रबंधन करके घरेलू कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वादी को कोई असुविधा दिए बिना, जो काम के लिए विदेश गया था। इसके अलावा, उसने अपने सपनों का बलिदान दिया और अपना पूरा जीवन परिवार और बच्चों के लिए बिताया।
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न्यायाधीश ने कहा कि आम तौर पर विवाहों में पत्नी बच्चों को जन्म देती है और उनका पालन-पोषण करती है तथा घर की देखभाल करती है। इस प्रकार वह अपने पति को उसकी आर्थिक गतिविधियों के लिए मुक्त कर देती है। चूंकि यह उसके कार्य का प्रदर्शन है जो पति को अपना कार्य करने में सक्षम बनाता है, इसलिए वह न्याय के दायरे में है और इसके फल में हिस्सा लेने की हकदार है।