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कभी हार न मानने वाले योद्धाओं में शामिल रहेगा Maharana Pratap का नाम, मौत पर अकबर की आंखों में भी थे आँसू

हमारे इतिहास में राजपूत समाज का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। इस वर्ग के योद्धाओं ने देश, जाति, धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों को तक न्यौछावर करने में संकोच नहीं किया है। राजपूतों के इस भूमि में छोटे बड़े अनेक राज्य रहे है, जिन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया मेवाड़ का इन्हीं महान राज्यों में अपना अलग ही स्थान है। जिसमें भारत के इतिहास के सबसे शक्तिशाली राजाओं में शामिल महाराणा प्रताप जैसे महान वीर ने जन्म लिया था। मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। जिसने कभी भी विदेशी मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं की थी।
जन्म और शौर्य की कहानी
शूरवीर महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्‍थान के मेवाड़ में हुआ था। वे प्रताप उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे। महाराणा प्रताप एक महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष थे। उन्होंने मुगलों के बार-बार हुए हमलों से मेवाड़ की रक्षा की। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी भी अपनी आन, बान और शान के साथ समझौता नहीं किया। विपरीत से विपरीत परिस्थिति ही क्यों ना, कभी हार नहीं मानी। इसलिए महाराणा प्रताप की वीरता के आगे किसी की भी कहानी ट‍िकती नहीं है।
अकबर के साथ हुआ हल्दीघाटी का युद्ध
महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच 1576 में हल्दी घाटी में युद्ध हुआ। जिसमें उन्होंने अकबर की 85 हजार सैनिकों वाली विशाल सेना के सामने अपने 20 हजार सैनिक और सीमित संसाधनों के बल पर अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए कई वर्षों तक संघर्ष किया। कहा जाता है कि यह युद्ध तीन घंटे से अधिक समय तक चला था। जिसमें जख्मी होने के बावजूद भी महाराणा प्रताप मुगलों के हाथ नहीं आए।
जब जंगल में छिपने को हुए मजबूर
हल्दीघाटी के युद्ध में जख्मी होने के बाद वे अपने कुछ साथियों के साथ जंगल में जाकर छिप गए और यहीं के कंद-मूल खाकर लड़ते रहे और यहीं से महाराणा फि‍र से सेना को जमा करने में जुट गए। तब तक मेवाड़ के मारे गए सैनिकों को की संख्या 1,600 तक पहुंच गई थी, जबकि मुगल सेना में 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500 से लेकर-7800 सैनिकों की जान चली गई थी। मुगल शासक अकबर लगातार 30 वर्षों के प्रयास के बाद भी महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका। आखिरकार, अकबर को महाराणा को पकड़ने का ख्याल दिल से निकलना पड़ा। बताते हैं क‍ि महाराणा प्रताप के पास हमेशा 104 किलो वजन वाली दो तलवार रहा करती थीं।
आजीवन चेतक का मिला साथ
इतिहास में हमेशा के लिए महान महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी उनकी ही तरह की बहादुर था। महाराणा के साथ उनके घोड़े को हमेशा याद किया जाता है। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगी थी, तब चेतक महाराणा को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया था, जिसे मुगलों ने भी कभी पार नहीं किया था। चेतक इतना ज्यादा ताकतवर था क‍ि उसके मुंह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी। चेतक ने महाराणा को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
मृत्‍यु पर अकबर की आंखें भी हुई थी नम
किदवंतियों के अनुसार, महाराणा प्रताप की कुल 11 रानियां थीं, जिनमें से अजबदे पंवार मुख्य महारानी थी और उनके 17 पुत्रों में से अमर सिंह महाराणा प्रताप के उत्तराधिकारी और मेवाड़ के 14वें महाराणा बने। महाराणा प्रताप का निधन आज ही के दिन 19 जनवरी 1597 को हुआ था। कहा जाता है क‍ि इस महाराणा की मृत्यु पर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं।

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