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लोगों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ी करने की राजनीति का परिणाम है मणिपुर की स्थिति: सेन

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) पोलित ब्यूरो के सदस्य तपन सेन ने रविवार को कहा कि मणिपुर की स्थिति भाजपा की ‘‘लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की राजनीति’’ का परिणाम है।
सेन ने मणिपुर में हिंसा को काबू करने में कथित रूप से विफल रहने के लिए मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग की। उन्होंने कहा, ‘‘भारत विविधतापूर्ण देश है जो हमारी ताकत है क्योंकि हम सभी एक हैं। हालांकि, सत्तारूढ़ दल की घटिया राजनीति के कारण मणिपुर में गंभीर स्थिति उत्पन्न हो गई है।’’
उन्होंने आशंका व्यक्त की कि देश में अगले साल आम चुनाव से पहले सांप्रदायिक घटनाएं हो सकती हैं।
नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) और चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स (सीवीपीपी) के संविदा कर्मियों का अखिल भारतीय सम्मेलन यहां आयोजित किया गया।

इसमें जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों और उत्तराखंड के 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
सेन ने यहां सम्मेलन से इतर संवाददाताओं से कहा, ‘‘मणिपुर में स्थिति बहुत खराब है और यह लोगों को धर्म, पंथ और जाति के आधार पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की भाजपा की राजनीति का नतीजा है।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को इस्तीफा दे देना चाहिए, उन्होंने कहा, हम मांग कर रहे हैं कि उन्हें इस्तीफा देना चाहिए क्योंकि हिंसा को रोकना उनकी जिम्मेदारी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मणिपुर में तीन मई से जो हो रहा है, उसकी तुलना पश्चिम बंगाल या राजस्थान की घटनाओं से नहीं की जा सकती। वे (भाजपा नेता) सत्ता पर नजर रखकर ध्यान भटकाने के लिए नाटक कर रहे हैं। लगभग तीन महीने बीत चुके हैं लेकिन भाजपा सरकार सामान्य स्थिति बहाल करने में विफल रही है।’’

मणिपुर संकट के पीछे विदेशी एजेंसियों का हाथ होने का संकेत देने वाली पूर्व सेना प्रमुख एम एम नरवणे की टिप्पणी की खबरों पर, माकपा नेता ने कहा कि अगर कोई विदेशी हाथ है, तो केंद्र सरकार को जवाब देना चाहिए कि वह वहां क्या कर रही थी।
माकपा के वरिष्ठ नेता एवं सीटू की प्रदेश समिति के अध्यक्ष एम वाई तारिगामी ने विभिन्न बिजली परियोजनाओं के संविदा श्रमिकों को नौकरी की गारंटी के मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथ लिया। उन्होंने स्मार्ट मीटर लगाना शुरू करने के लिए जम्मू कश्मीर प्रशासन की भी आलोचना की और कहा, यह बिजली के निजीकरण का सीधा परिणाम है। निजी कंपनियां बिजली दरें बढ़ाने के लिए बाध्य हैं, लेकिन उपभोक्ता भारी भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं, जिससे जम्मू कश्मीर में लगभग हर जगह विरोध शुरू हो गया है।’’
सीटू महासचिव जगदीश शर्मा ने कहा कि सम्मेलन में सर्वसम्मति से बिजली परियोजना श्रमिकों की एक समन्वय समिति बनाने का निर्णय लिया गया, जो तीन महीने में एक बार बैठक करके उनकी मांगों की समीक्षा करेगी और आगे की रणनीति तय करेगी।

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