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देश में कई सारे मुद्दे पर Manipur पर ही क्यों अटकी विपक्षी दलों की सुई, क्या किसी संजिवनी की हो रही तलाश

वर्तमान में देश की राजनीति के केंद्र में मणिपुर बना हुआ है। मई के पहले सप्ताह से मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच तनाव लगातार बना हुआ है। इसमें 140 से ज्यादा लोगों की मौत भी हो गई है। लेकिन संसद सत्र से ठीक एक दिन पहले मणिपुर को लेकर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें तीन महिलाएं नग्न अवस्था में परेड करती हुई दिखाई दे रही हैं। इसके बाद मणिपुर पर चर्चा जबरदस्त तरीके से तेज हो गई। मणिपुर को लेकर विपक्षी दलों ने भी अपने रुख को आक्रामक कर लिया। महीनों से मणिपुर मामलों को लेकर कोई बयान नहीं देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वायरल वीडियो पर अपना क्रोध व्यक्त किया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। इससे भारत शर्मसार हुआ है। 
 

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हालांकि अपने बयान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान, पश्चिम बंगाल का भी नाम ले लिया। उन्होंने कहा कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ या मणिपुर हो, देश के किसी भी कोने में महिलाओं के खिलाफ इस तरह की चीजें होती हैं तो इसमें वाद-विवाद से ऊपर होकर कार्रवाई करने की जरूरत है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से अपील की कि वे ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। हाालंकि, प्रधानमंत्री के इस बयान को लेकर आलोचनाएं भी शुरू हो गई। कुछ लोग कहने लगे कि मणिपुर पर प्रधानमंत्री का बयान देना था। लेकिन उन्होंने विपक्ष शासित राज्यों को भी इसमें घसीट लिया। हालांकि, सत्ता पक्ष को इस बात की उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान के बाद संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 

विपक्षी दल मणिपुर को लेकर सरकार पर जबरदस्त तरीके से आक्रामक है। इसका बड़ा कारण यह है कि मणिपुर में डबल इंजन के सरकार फेल होना। मणिपुर में हाल में ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी। एन बिरेन सिंह मणिपुर के मुख्यमंत्री हैं। विपक्षी दल जबरदस्त तरीके से संसद के दोनों सदनों में मणिपुर को लेकर चर्चा चाहते हैं। सरकार भी चर्चा को तैयार है। लेकिन कुछ नियम व्यवधान बन रहे हैं। इसके अलावा विपक्षी दल मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संसद के भीतर बयान की मांग कर रहे हैं। लेकिन इसको लेकर सत्ता पक्ष की ओर से ठोस जवाब नहीं दिया जा रहा। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ तौर पर कहा कि सरकार मणिपुर पर हर एंगल से चर्चा को तैयार है। सच्चाई देश के सामने आनी चाहिए। किसी को कुछ छुपाना नहीं है। मैं नहीं समझ पा रहा हूं क्या कि विपक्ष चर्चा क्यों नहीं चाहता है?

20 जुलाई से मानसून सत्र शुरू हुआ है। 7 दिन बीत चुके हैं। संसद में सुचारू ढंग से काम नहीं हो पा रहा है। दोनों सदन लगातार का स्थगित होते रहे। शुक्रवार को भी संसद शुरुआती समय में ही स्थगित हो गया। हालांकि, इस दौरान एक और दिलचस्प बात यह हो गई कि विपक्षी दलों की ओर से मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया गया। सरकार का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुए चर्चा का जवाब देना होगा। विपक्षी दलों को यह बात अच्छे से पता है कि अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को कोई खतरा नहीं। लेकिन उन्हें इस बात की संतुष्टि होगी कि अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री चर्चा का जवाब देंगे जिसमें मणिपुर को लेकर बात रखी जा सकेगी। 

इस दौरान विपक्षी गठबंधन इंडिया की भी खूब चर्चा हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सांसदों की बैठक के दौरान विपक्षी गठबंधन इंडिया की तुलना पीएफआई और मुजाहिदीन से कर दी। इसने विपक्षी दलों को और भी भड़का दिया। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने साफ तौर पर कहा कि हम प्रधानमंत्री से मणिपुर पर जवाब की मांग कर रहे हैं और प्रधानमंत्री इंडिया को ईस्ट इंडिया बता रहे हैं। दूसरी जगह जाकर राजनीतिक भाषण दे रहे हैं। बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर विपक्षी दलों के लिए मणिपुर का मुद्दा इतना बड़ा क्यों हो गया है? फिलहाल देश में कई सारे मुद्दे हैं जिसमें एनसीपी में टूट, केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग, बेरोजगारी, महंगाई, दिल्ली अध्यादेश शामिल है जिस पर सरकार को घेरा जा सकता था। संसद सत्र से पहले विपक्षी दलों की ओर से इन मुद्दों को उठाने की बात भी कही गई थी। लेकिन वर्तमान में ठेके उसे मणिपुर पर ही शोर सुनाई पड़ता है।
 

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संसद सत्र से ठीक पहले मणिपुर से शर्मनाक वीडियो सामने आ गया जिसके बाद विपक्षी दलों को लगा कि इस पर सरकार को घेरने का अच्छा मौका है। मणिपुर को लेकर सरकार पहले से ही बैकफुट पर है। शायद यही कारण है कि विपक्षी दल मणिपुर को बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्ष को लगता है कि मणिपुर को लेकर सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। चाहे वह मणिपुर में बॉर्डर सुरक्षा का मामला हो या फिर कानून व्यवस्था की, यह बात भी सच है कि मणिपुर से जो तस्वीर सामने आ रही है, वह राज्य की भाजपा सरकार के फेल होने की सुबूत भी दे रही हैं। विपक्षी दल सरकार पर हर हाल में दबाव बनाए रखना चाहते हैं ताकि भाजपा शासित मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। अगरएन बिरेन सिंह इस्तीफा देते हैं तो कहीं ना कहीं विपक्षी दलों की बड़ी जीत होगी और शायद यही कारण है कि विपक्षी दल मणिपुर को लेकर मोदी सरकार पर जबरदस्त तरीके से आक्रामक है। वहीं, लोकसभा चुनाव को लेकर पूर्वोत्तर में विपक्षी दलों को मजबूती भी मिल सकती है। अगर मामला थोड़ा सा भी विपक्षी दलों के पक्ष में जाता है तो यह उनके लिए लोकसभा सुनाव से पहले संजिवनी की तरह काम करेगा। 

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