ओबीसी आरक्षण को लेकर अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे दो कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को अपने आंदोलन के आठवें दिन आरोप लगाया कि आंदोलनकारी मनोज जरांगे के फैलाए भ्रम के कारण मराठा युवक अपनी जान दे रहे हैं।
उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ सिंदे पर उनके आंदोलन की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया।
जालना जिले के वाडीगोद्री गांव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण को कमजोर न किए जाने की मांग को लेकर लक्ष्मण हेक और नवनाथ वाघमारे आंदोलन कर रहे हैं।
वह उस मसौदा अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जिसमें कुनबी को मराठा समुदाय के सदस्यों के ऋषि सोयारे (रक्त संबंधी) के रूप में मान्यता दी गई है। कुनबी, एक कृषि समूह है, जिसे ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण का लाभ मिलता है।
जरांगे मांग कर रहे हैं कि सभी मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जारी किए जाएं, जिससे वह सरकारी नौकरियों और शिक्षा में कोटा के लिए पात्र हों।
हेक ने कहा कि मराठा समुदाय आर्थिक रूप से वंचित हो सकता है, लेकिन वह सामाजिक रूप से पिछड़े नहीं हैं।
हेक ने कहा, ‘‘आरक्षण मानदंड सामाजिक रूप से पिछड़ों से संबंधित है।’’ उन्होंने सुझाव दिया कि मराठों को सरकार के साथ अपने आर्थिक विकास के लिए योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘जरांगे भ्रम पैदा कर रहे हैं, जिस कारण मराठा युवा आरक्षण को लेकर आत्महत्या कर रहे हैं। जरांगे मराठों की तुलना ओबीसी समुदाय से कर रहे हैं।’’
ओबीसी कार्यकर्ता ‘‘ऋषि सोयारे’’ मसौदा अधिसूचना को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर प्रदर्शन को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए हेक ने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री ने हमारे विरोध पर अपनी आंखें और कान बंद कर लिए हैं।