हर लड़की के जीवन में शादी से पहले और बाद में कई चुनौतियां आती हैं। कभी दहेज का दबाव तो कभी रिश्तों में हिंसा का डर। महिलाओं को इन मुश्किल हालात से बचाने और सुरक्षा का भरोसा देने के लिए कानून बनाए गए। ये कानून सिर्फ कागजी नियम नहीं बल्कि एक ढाल है जो उन्हें न केवल अन्याय से लड़ने की ताकत देते हैं बल्कि अपने जीवन को आत्मसम्मान के साथ जीवन जीने का हौसला तक देते हैं। भारतीय परिवारों में शादी टूटने के बाद पति पत्नी के बीच गुजारे भत्ते को लेकर जो झगड़े चलते हैं। बरसों बरस जो कानूनी दांव खेले जाते हैं, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक लकीर खींच दी है। अतुल सुभाष केस के बाद महिला कानूनों पर छि़ड़ी बहस सड़क से संसद और अब कोर्ट तक पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर घरेलू हिंसा और दहेज कानूनों के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को इन कानूनों का गलत इस्तेमाल न करने की सलाह दी है, जो उनकी सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने गुजारे भत्ते पर बड़ी टिप्पणी की है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि हिंदुओं में विवाह पवित्र संस्कार की नींव होता है। ये परिवार की नींव होता है, इसे कारोबार के तौर पर नहीं देखा जाए। गुजारा भत्ता कानून महिलाओं के कल्याण के लिए हैं। इसका उद्देश्य पति से जबरन वसूली करना नहीं है। गुजारे भत्ते के कानून पति को धमकाने, सजा दिलाने और उस पर हावी होने का साधन नहीं होने चाहिए। हमें दूसरे पक्ष को भरण पोषण या गुजारे भत्ते के नाम पर संपत्ति के बराबर बांटे जाने के तरीके पर आपत्ति है। गुजारा भत्ता महिला की आर्थिक स्थिति पुरुष के समान बनाने के लिए नहीं बल्कि बेहतर जीवन देने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पमी तलाक ले रहे एक दंपत्ति के मुकदमे में की है। पत्नी की शिकायत ये थी कि पति उसे मूल संपत्ति से बहुत कम हिस्सा दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बराबर बंटवारे का तर्क खारिज करते हुए ये भी सवाल किया कि अगर कल पति की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है तो क्या पत्नी इस पूर्व पति को अपनी संप्ति में से बराबर का हक देगी?