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नागौर में 39 साल पहले हुआ था मिर्धा बनाम मिर्धा का मुकाबला, अब चाचा भतीजी आमने-सामने

बात 1984 की है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की प्रचंड लहर थी। इसके बावजूद राजीव गांधी को राजस्थान के नागौर से एक ऐसे मजबूत उम्मीदवार की तलाश थी जो नाथूराम मिर्धा को का मात दे सके। आखिरकार उन्होंने रामनिवास मिर्धा को टिकट दिया और मिर्धा परिवार के दो दिग्गजों के उस मुकाबले में नाथूराम मिर्धा को शिकस्त मिली।
1984 में नाथूराम मिर्धा ने लोकदल से नागौर सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन रामनिवास मिर्धा ने इससे पहले कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा था। वे 1967 से लगातार राज्यसभा के लिए निर्वाचित होते रहे थे। लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ा और 48 हजार से ज्यादा वोटों से नाथूराम मिर्धा को हरा दिया।
वह पहला मौका था जब जाटलैंड के इस रसूखदार राजनीतिक घराने के दो दिग्गज आमने-सामने थे और अब 39 साल बाद उसी नागौर में मिर्धा परिवार के दो नेता एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं।

इस बार विधानसभा चुनाव में मुकाबला मिर्धा परिवार से ताल्लुक रखने वाले चाचा और भतीजी के बीच है।
रामनिवास मिर्धा के पुत्र हरेंद्र मिर्धा नागौर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नाथूराम मिर्धा की पौत्री ज्योति मिर्धा को टिकट दिया है। हरेंद्र मिर्धा और ज्योति मिर्धा रिश्ते में चाचा और भतीजी लगते हैं।
पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा इस साल सितंबर में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई हैं।
वैसे नागौर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर मिर्धा घराने से ताल्लुक रखने वाले चार लोग चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस ने नागौर विधानसभा से हरेंद्र मिर्धा, डेगाना विधानसभा से विजयपाल मिर्धा और खींवसर से तेजपाल मिर्धा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, भाजपा ने नागौर विधानसभा सीट से ज्योति मिर्धा को चुनाव मैदान में उतारा है।
नागौर में मिर्धा बनाम मिर्धा के कारण मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

हालांकि निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं।
ज्योति मिर्धा से मुकाबले के बारे में पूछे जाने पर हरेंद्र मिर्धा ने पीटीआई- से कहा, यह सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए कि वह भाजपा में क्यों शामिल हुईं? हमारा तो कांग्रेस के साथ लंबा संबंध रहा है। पार्टी ने मुझे खड़ा किया है और विश्वास है कि जनता मुझे विजयी बनाएगी।
उनका यह भी कहना था कि ज्योति मिर्धा और उनके बीच चुनावी मुकाबला होने से निजी संबंधो में कोई कटुता नहीं आई है।
उन्होंने रामनिवास मिर्धा और नाथूराम मिर्धा के बीच मुकाबला के बारे में कहा कि दोनों में बहुत अच्छे रिश्ते थे लेकिन राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बनी कि दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा।
उन्होंने उम्मीद जताई कि अशोक गहलोत सरकार की योजनाओं और कांग्रेस पार्टी की सात गारंटी का उन्हें फायदा मिलेगा।

नागौर के स्थानीय मतदाताओं का भी मानना है कि मिर्धा परिवार के दो लोगों के बीच आमने-सामने की टक्कर से मुकाबला बहुत ही दिलचस्प और कांटे का हो गया है।
स्थानीय मतदाता और पेशे से शिक्षक बलिराम चौधरी का कहना था, अभी तो ज्योति मिर्धा का बोलबाला लग रहा है, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में हो गई तो हरेंद्र मिर्धा इस सीट से जीत सकते हैं। अब यह देखना होगा कि हबीबुर्रहमान को कितने वोट मिलते हैं।
नागौर निवासी मोहम्मद असलम का मानना था कि इस सीट पर मुकाबला कांटे का है, लेकिन जातीय समीकरण के चलते हरेंद्र थोड़ा आगे दिखाई दे रहे हैं।
उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि नागौर का मुस्लिम मतदाता हबीबुर्रहमान के साथ नहीं जाएगा। हरेंद्र मिर्धा को मुसलमानों के साथ ही जाट और कुछ अन्य जातियों के वोट भी मिल सकते हैं।

इसलिए उनके जीतने की संभावना ज्यादा लगती है।
निर्दलीय उम्मीदवार और इस क्षेत्र से विधायक रह चुके हबीबुर्रहमान का कहना है कि नागौर के लोग किसी परिवार को नहीं, बल्कि उसे जिताएंगे जिसने उनके लिए काम किया है।
उन्होंने पीटीआई- से कहा, मेरे साथ 36 बिरादरी के लोग हैं। मैंने लोगों के लिए काम किया है। कांग्रेस ने मेरा टिकट काटा है, अल्पसंख्यकों की अपेक्षा की है। जनता इस चुनाव में उन्हें सबक जरूर सिखाएगी।
भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी ज्योति मिर्धा से कई बार के प्रयास के बावजूद संपर्क नहीं हो पाया।
आजादी के बाद से नागौर से अब तक पांच-पांच बार जाट व मुस्लिम प्रत्याशी विजयी रहे हैं। नागौर विधानसभा क्षेत्र में करीब 2 लाख 64 हजार मतदाता है जिनमें मुस्लिम और जाट मतदाता निर्णायक माने जाते हैं।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए 25 नवंबर को मतदान होगा।

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