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लंबित मामलों को निपटाने के लिए सक्रिय कदम उठाने की जरूरत है: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि लंबित मामलों को निपटाने और सुनवाई टालने के तरीकों पर अंकुश लगाने के लिए सक्रिय कदम उठाये जाने की तत्काल जरूरत है।
न्यायालय ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि न केवल सभी स्तरों पर लंबित मामलों के निपटारे के लिए सक्रिय कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है, बल्कि त्वरित न्याय चाहने वाले वादियों की आकांक्षाओं को पूरा करने और सुनवाई टालने के लिए अपनाये जाने वाले तरीकों पर अंकुश लगाने के लिए सभी हितधारकों को आत्मनिरीक्षण करने की भी जरूरत है।
न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट (सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने शुक्रवार को दिए गए आदेश में जिला और तालुका स्तर की सभी अदालतों को समन की तामील कराने, लिखित बयान दाखिल करने, दलीलों को पूरा करने, याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार या इनकार करने की रिकॉर्डिंग और मामलों के त्वरित निपटारे आदि के निर्देश दिये।

पीठ ने पांच साल से अधिक समय से लंबित पुराने मामलों की लगातार निगरानी के लिए संबंधित राज्यों के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा समितियों के गठन का भी निर्देश दिया।
न्यायालय ने कहा कि लोग न्याय की आस में अपने वाद दायर करते हैं, इसलिए सभी हितधारकों को यह सुनिश्चित करने की बड़ी जिम्मेदारी है कि न्याय मिलने में देरी के कारण इस प्रणाली में लोगों का विश्वास कम न हो।
उसने कहा, ‘‘न केवल सभी स्तरों पर लंबित मामलों को निपटारे के लिए सक्रिय कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है, बल्कि त्वरित न्याय चाहने वाले वादियों की आकांक्षाओं को पूरा करने और सुनवाई टालने के जिम्मेदार तरीकों पर अंकुश लगाने के लिए सभी हितधारकों द्वारा आत्मनिरीक्षण करने की भी जरूरत है।’’
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इस बात पर गौर करना आवश्यक है कि भारत में लगभग छह प्रतिशत आबादी मुकदमेबाजी में उलझी हुई है, ऐसे में अदालतों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब दक्षता आधुनिक सभ्यता और जीवन के सभी क्षेत्रों की पहचान बन गई है, तो समय अवधि को कम करके न्याय प्रदान करने की गति को तेज करने की तत्काल आवश्यकता है।
उच्चतम न्यायालय ने जिला और तालुका स्तर पर सभी अदालतों को नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश-5, नियम (2) के तहत निर्धारित समयबद्ध तरीके से समन की तामील कराना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
आदेश में कहा गया है कि मुकदमे के बाद मौखिक दलीलें तुरंत और लगातार सुनी जाएंगी और निर्धारित अवधि के भीतर फैसला सुनाया जाएगा।
न्यायालय ने यह आदेश यशपाल जैन की याचिका पर दिया, जिन्होंने एक दीवानी मुकदमे में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। वहां एक स्थानीय अदालत में 43 साल पहले शुरू हुआ यह मामला अब भी जारी है।
पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और निचली अदालत से जैन की याचिका पर छह महीने में फैसला करने को कहा।

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