कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बेंगलुरु के एचबीआर लेआउट के कुछ निवासियों की ओर से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक आवासीय संपत्ति का इस्तेमाल इबादत के लिए किया जा रहा था।
मुख्य न्यायाधीश प्रसन्ना बी. वराले और न्यायमूर्ति एम. जी. एस कमल की खंडपीठ ने हाल ही में एक जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘हमारे बार-बार पूछने के बावजूद वकील कानून के शासन में ऐसा कोई निषेध, रोक के प्रावधान दिखाने में असमर्थ रहे, जो किसी निवासी को अपने आवासीय स्थान का इबादत के लिए इस्तेमाल करने से रोकता हो।’’
फैसले की प्रति अभी अदालत द्वारा जारी नहीं की गई है।
सैम पी फिलिप, कृष्णा एसके, जगैसन टीपी और एचबीआर लेआउट के पांच अन्य निवासियों ने इस मुद्दे पर आवास और शहरी विकास विभाग, बीबीएमपी और मस्जिद ई-अशरफित के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
बाद में उनकी याचिका को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया गया।
यह दलील दी गयी थी कि एक आवासीय क्षेत्र का इस्तेमाल इबादतगाह के रूप में किया जा रहा है, जिससे पड़ोसियों को परेशानी हो रही है। यह मामला पहले भी एक बार अदालत तक पहुंचा था जब मस्जिद ट्रस्ट ने बीबीएमपी की मंजूरी के बिना एक इमारत का निर्माण किया था।
अदालत ने निर्देश दिया था कि बीबीएमपी से आवश्यक मंजूरी प्राप्त करने के बाद ही मदरसे के लिए भवन का निर्माण किया जा सकता है। इसके बाद इस इमारत का निर्माण किया गया और इसे गरीब बच्चों के लिए मदरसे के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। संपत्ति पर नई इमारत बनने के बाद यह जनहित याचिका दायर की गई थी।
अदालत ने जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ऐसा कोई विशिष्ट निषेध दिखाने में असमर्थ थे और उन्होंने अपनी दलील दोहराई कि मस्जिद के रूप में इबादत करने के लिए आवासीय क्षेत्र का उपयोग करना नियमों का उल्लंघन है।इसके अलावा (उन्होंने) बार-बार कहा कि चूंकि बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो सकते हैं, इसलिए याचिकाकर्ताओं और निवासियों को गड़बड़ी की आशंका है। ये दलीलों में न तो उचित कारण है, न तर्क और न ये कानून के अनुरूप हैं।’’
याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील पर अदालत ने कड़ी आपत्ति जताई कि इबादत से जोखिम उत्पन्न होता है।