केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के लिए धन की कोई कमी नहीं है और दोहराया कि पश्चिम बंगाल के लिए धन केंद्रीय निर्देशों का अनुपालन नहीं करने के कारण जारी नहीं किया गया है।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘‘केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन न करने के कारण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की धारा 27 के प्रावधान के अनुसार पश्चिम बंगाल राज्य का कोष 9 मार्च, 2022 से रोक दिया गया है।’’
यह बयान ऐसे दिन आया जब पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने मनरेगा के बकाए को लेकर केंद्र के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए कोलकाता में राजभवन तक मार्च किया।
टीएमसी ने केंद्र द्वारा धन जारी करने की मांग को लेकर 3 और 4 अक्टूबर को दिल्ली में भी विरोध प्रदर्शन किया था।
मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि 4 अक्टूबर तक योजना के लिए निर्धारित 60,000 करोड़ रुपये के बजट में से 56,105.69 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं।
इसमें कहा गया है, ‘‘कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए धन की उपलब्धता कोई बाधा नहीं है।
मंत्रालय ने कहा कि मनरेगा एक मांग-संचालित मजदूरी रोजगार कार्यक्रम है और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोष जारी करना एक सतत प्रक्रिया है और केंद्र सरकार काम की मांग को ध्यान में रखते हुए कोष उपलब्ध करा रही है।
इसमें कहा गया है कि मंत्रालय जमीनी स्तर पर काम की मांग को पूरा करने के लिए आवश्यकता पड़ने पर योजना के लिए अतिरिक्त धनराशि की मांग करता है।
बयान में कहा गया है, ‘‘मंत्रालय समय पर वेतन भुगतान के लिए सभी प्रयास कर रहा है। राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को समय पर वेतन आदेश तैयार करने की सलाह दी गई है।
बयान में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप समय पर भुगतान आदेश जारी करने की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। इसमें कहा गया है कि इससे श्रमिकों के खाते में मजदूरी जमा करने में लगने वाले समय में सुधार हुआ है।
मंत्रालय ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में 4 अक्टूबर तक 99.12 प्रतिशत भुगतान आदेश 15 दिनों के भीतर उत्पन्न हुए हैं। उसने देरी से भुगतान के लिए राज्यों को भी दोषी ठहराया।
उसने कहा, ‘‘मजदूरी के भुगतान में देरी राज्यों में कार्यान्वयन के मुद्दों के कारण होती है जिसमें अपर्याप्त स्टाफिंग, माप, डेटा प्रविष्टि, वेतन सूची का निर्माण, फंड ट्रांसफर ऑर्डर (एफटीओ) आदि शामिल हैं।
वेतन भुगतान में देरी के मामले में, लाभार्थी प्रावधानों के अनुसार विलंब मुआवजे का हकदार है।’’
मंत्रालय ने यह भी कहा कि किसी परिवार का ‘जॉब कार्ड’ केवल कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में ही हटाया जा सकता है, लेकिन आधार पेमेंट ब्रिज सिस्टम (एपीबीएस) के कारण नहीं।
उसने कहा, ‘‘जॉब कार्ड को अद्यतन करना/हटाना राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किया जाने वाला एक नियमित कार्य है। यदि कोई ‘जॉब कार्ड’ जाली (जॉब कार्ड गलत है) है/ जॉब कार्ड का दोहराव है/परिवार काम करने का इच्छुक नहीं है/परिवार ग्राम पंचायत से स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गया है, जॉब कार्ड में शामिल एकल व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, तो जॉब कार्ड को समाप्त किया जा सकता है।’’
मंत्रालय ने कहा कि एपीबीएस और कुछ नहीं बल्कि एक जरिया है जिसके माध्यम से भुगतान लाभार्थियों के खाते में जमा किया जा रहा है।
मंत्रालय ने कहा कि एपीबीएस प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से मजदूरी भुगतान करने का सबसे अच्छा तरीका है। उसने कहा कि इससे लाभार्थियों को समय पर वेतन भुगतान प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के आंकड़े से पता चलता है कि जहां आधार को डीबीटी के लिए सक्षम किया गया है, वहां सफलता का प्रतिशत 99.55 प्रतिशत या उससे अधिक है। मंत्रालय ने कहा, खाता-आधारित भुगतान के मामले में ऐसी सफलता लगभग 98 प्रतिशत है।
हालांकि, वेतन भुगतान का मिश्रित जरिया – एनएसीएच और एबीपीएस – 31 दिसंबर तक या अगले आदेश तक बढ़ा दिया गया है।