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नयी दिल्ली। कांग्रेस ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में आए उच्चतम न्यायालय के फैसले का सोमवार को स्वागत करते हुए कहा कि कानून को दुरुस्त करना जरूरी था और यह पहले ही किया जाना चाहिए था। पार्टी प्रवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि यह विशुद्ध रूप से कानूनी मुद्दे को ठीक करने के लिए कई वर्षों से लंबित मुद्दा रहा है।
सिंघवी ने एक वीडियो जारी कर कहा, ‘‘यह एक हितकर, वांछनीय और स्वागतयोग्य फैसला है। यह कुछ ऐसा है जो कानून को सही बनाता है और इसे पहले ही किया जाना चाहिए था।’’ उनका कहना था कि मामले के तथ्यों पर जाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह किसी को रिश्वत मिली या नहीं, इस बारे में निर्णय नहीं है। सिंघवी ने कहा, ‘‘यह एक कानूनी मुद्दा है जो इस धारणा पर तय किया गया है कि कुछ लोगों ने मतदान नहीं किया और कुछ लोगों ने रिश्वतखोरी के आरोप पर मतदान किया और क्या उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि वे दोषी हैं या नहीं।’’
कांग्रेस नेता ने कहा कि जो फैसला पलटा गया वह कई साल पहले दिया गया फैसला है, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति किसी विशेष तरीके से वोट देने के लिए रिश्वत लेता है और फिर वोट देता है, तो उसे उन संवैधानिक अनुच्छेदों के तहत छूट मिल जाएगी जो व्यक्तियों को संसद के उनके भाषण के संबंध में सुरक्षा प्रदान करती है। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने झामुमो रिश्वत मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए 1998 के फैसले को सर्वसम्मति से पलट दिया।
पांच न्यायाशीधों की पीठ के फैसले के तहत सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट दी गई थी। प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है। अनुच्छेद 105 और 194 संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों एवं विशेषाधिकारों से संबंधित हैं।