बिहार में हुए एकमात्र उपचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई है। दरअसल, पूर्णिया लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली रूपाली विधानसभा सीट पर यह उपचुनाव हुआ था। यहां से निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने बाजी मार ली है। लेकिन मुख्य मुकाबला जदयू और राजद के बीच ही माना जा रहा था। जदयू ने जहां कलाधर मंडल को मैदान में उतारा था। तो वहीं राजद ने लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद भी बीमा भारती पर भरोसा बनाए रखा। जदयू से नाराजगी के बाद बीमा भारती राजद में शामिल हो गई थीं। उन्होंने पूर्णिया से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था लेकिन जीत नहीं सकी थीं। वह रूपाली से पूर्व विधायक रही हैं। उनके इस्तीफा देने के बाद ही यह विधानसभा के चुनाव हुए हैं।
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अब हम मुख्य मुद्दे पर आते हैं। सवाल यह है कि आखिर रुपौली में इतनी मेहनत करने के बावजूद भी तेजस्वी यादव की हर कैसे हुई? क्या पप्पू यादव ने तेजस्वी से बदला ले लिया? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पप्पू यादव पूर्णिया से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन लालू यादव और तेजस्वी यादव ने वीटो लगा दिया। इसके बाद पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे। राजद उम्मीदवार बीमा भारती को जीताने के लिए तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में कैंप किया था। अंत में उन्होंने यह तक कह दिया था कि हमें नहीं देना तो एनडीए को दे दो लेकिन किसी और को वोट मत देना।
बावजूद इसके पप्पू यादव ने पूर्णिया से जीत हासिल की। हालांकि चुनावी नतीजों के बाद बीमा भारती ने पप्पू यादव से समर्थन किया अपील की थी। पप्पू यादव ने भी अपने समर्थकों से बीमा भारती को वोट देने की बात कही थी। लेकिन ऐसा लगता है कि पप्पू यादव के समर्थकों ने बीमा भारती के पक्ष में मतदान नहीं किया। ऐसा दवा इसलिए किया जा सकता है क्योंकि हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में देखें तो रुपौली विधानसभा में जदयू उम्मीदवार को बढ़त मिली थी। जबकि दूसरे नंबर पर पप्पू यादव रहे थे। बीमा भारती तीसरे नंबर पर ही थी। पप्पू यादव और बीमा भारती के वोट को मिला दे तो रुपौली में राजद के पक्ष में समीकरण बिल्कुल फिट बैठ रहा था। लेकिन ऐसा लगता है कि पप्पू यादव की अपील के बाद भी उनके समर्थकों ने बीमा भारती को वोट नहीं दिया है जिसकी वजह से उनकी हार हुई है।
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इतना ही नहीं, रुपौली विधानसभा के उपचुनाव ने यह भी बता दिया कि तेजस्वी यादव की जो पैन बिहार छवि बनाई जा रही थी, उसको गहरा धक्का लगा है। तेजस्वी यादव को पूरे बिहार के नेता के तौर पर पेश किया जा रहा था, उसमें एक बड़ी बाधा सामने आई है। इस नतीजे से यह भी पता चलता है कि राजद को अभी और मेहनत करने की जरूरत है। जदयू उम्मीदवार ने यहां मेहनत जरुर किया था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन राजद तीसरे नंबर पर चली जाएगी, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। ऐसे में कहीं ना कहीं राजद को और तेजस्वी यादव को अभी भी जमीन पर मेहनत करने की आवश्यकता है। कुछ ऐसे ही परिणाम लोकसभा चुनाव के भी आए थे। ढाई सौ से ज्यादा रैलियों को संबोधित करने के बावजूद भी राजद अपने दम पर सिर्फ चार सीटें ही जीत पाई थी।