दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार जारी है। 5 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। 2020 के दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन को सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के लिए छह दिन की हिरासत पैरोल दी। ताहिर हुसैन एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। दंगों में कथित भूमिका के लिए आप द्वारा निष्कासित किए गए हुसैन ने दावा किया कि वह साजिश का शिकार थे। उन्होंने अपना प्रचार भी शुरू कर दिया है। वहीं, 2020 के दंगों के आरोपी शफा उर रहमान को आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने और प्रचार करने के लिए पांच दिन की ‘कस्टडी पैरोल’ दे दी।
हालांकि, ये पहला मौका नहीं है जब किसी को चुनाव प्रचार के लिए पैरोल मिली है। पिछले एक साल में देखें तो ऐसे कई मामले हमारे सामने आए हैं। लोकसभा चुनाव के समय उत्पाद शुल्क नीति मामले में जेल में बंद अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए 1 जून तक अंतरिम जमानत पर रिहा करने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में अपनी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार भी किया था। अदालत ने निर्देश दिया था कि केजरीवाल को कुछ शर्तों के साथ 1 जून तक अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए, जिसमें इस अवधि के दौरान आधिकारिक कर्तव्यों से दूर रहना और दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी प्राप्त करने के लिए जब तक आवश्यक न हो, किसी भी फाइल पर हस्ताक्षर करना शामिल था।
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लोकसभा चुनाव के समय ही बिहार के गैंगस्टर से नेता बने और मोकामा से पांच बार विधायक रहे अनंत सिंह, जिन्हें ‘छोटे सरकार’ के नाम से जाना जाता है, को 15 दिन की पैरोल पर पटना की बेउर केंद्रीय जेल से रिहा कर दिया गया था। तब वह जेल में बंद थे। सिंह को दोषी ठहराया गया था और दो अलग-अलग शस्त्र अधिनियम मामलों में 10 साल के कठोर कारावास का सामना करना पड़ा था। मोकामा विधानसभा क्षेत्र मुंगेर लोकसभा के अंतर्गत आता है और इसका चुनाव 13 मई को होना था। अनंत सिंह को बाहर कर राजनीतिक लाभ की एक कोशिश की गई थी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव से एक सप्ताह पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह फिर से पैरोल पर बाहर आ गए हैं, उन्हें मंगलवार को एक महीने के लिए रोहतक की सुनारिया जेल से रिहा कर दिया गया। राम रहीम सिरसा में अपने डेरा मुख्यालय में रहेंगे। अगस्त 2017 में सिरसा आश्रम में अपने दो शिष्यों के साथ बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद यह पहली बार है। पहले के उदाहरणों में जहां वह जेल से बाहर था, वह उत्तर प्रदेश में डेरा के बागपत आश्रम में रहता था। वह बागपत आश्रम में जाने से पहले 10 दिन सिरसा में बिताएंगे।
हरियाणा चुनाव से पहले भी गुरमीत राम रहीम सिंह चुनाव आयोग द्वारा उनकी पैरोल याचिका को मंजूरी दिए जाने के बाद जेल से बाहर आए थे। हरियाणा और पंजाब में प्रभाव रखने वाले राम रहीम सिंह की रिहाई 5 अक्टूबर को होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले हुई थी। राम रहीम की फरलो और पैरोल लगातार चुनावों के साथ मेल खाती रही है, चाहे वह नगर निकाय हों या राज्य विधानसभाएं।
दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को फरवरी 2020 के दंगों के आरोपी शफा उर रहमान को आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने और प्रचार करने के लिए पांच दिन की ‘कस्टडी पैरोल’ दे दी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी ने चार सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत दिये जाने के अनुरोध संबंधी रहमान की याचिका पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति बाजपेयी ने सुरक्षा व्यय के रूप में 2.07 लाख रुपये जमा करने पर 30 जनवरी से तीन फरवरी तक प्रतिदिन 12 घंटे के लिए उनकी रिहाई का निर्देश दिया। ‘कस्टडी पैराल’ के दौरान आरोपी अत्यावश्यक कारणों से जेल से बाहर तो आता है लेकिन वह हमेशा पुलिस की हिरासत में ही होता है।
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ऊपर दिए गए तमाम मामले तब के हैं जब चुनाव के समय किसी खास व्यक्ति को पेरोल पर बाहर किया गया है। इससे कहीं ना कहीं सीधा-सीधा कनेक्शन सियासी निकल जाता है। हालांकि, केजरीवाल को इस मामले में अब तक तो उन्हे नहीं ठहराया गया। लेकिन अन्य जो उदाहरण दिए गए हैं उसमें कई लोगों को दोषी ठहराया जा चुका है। चुनाव के समय पर पेरोल एक नई परंपरा बन गई है। हालांकि, यह फैसले कोर्ट की ओर से किया जा रहे हैं। कोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करना उचित तो नहीं है। लेकिन आम धारणा कुछ और है।