पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में जाति आधारित गणना के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं मंगलवार को खारिज करते हुए कहा कि यह पूरी तरह से ‘वैध’ है और राज्य सरकार के पास इसे कराने का अधिकार है।
मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने जातीय गणना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। जातीय सर्वेक्षण का आदेश पिछले साल दिया गया था और इसे इस साल के शुरू में आरंभ किया गया था।
पीठ ने इस बाबत सात जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उसने अपने 101 पन्नों के फैसले में कहा, ‘‘हम पाते हैं कि राज्य का कदम पूरी तरह से वैध है और वह इसे कराने में सक्षम है। इसका मकसद (लोगों को) न्याय के साथ विकास प्रदान करना है।”
फैसले की शुरुआत इस टिप्पणी से हुई कि जाति सर्वेक्षण कराने का राज्य का फैसला और विभिन्न आधारों पर इसे दी गई चुनौती से पता चलता है कि सामाजिक ताने-बाने से जाति को समाप्त करने के प्रयासों के बावजूद, यह एक वास्तविकता बनी हुई है।
सर्वेक्षण पर अदालत द्वारा रोक लगाने के तीन महीने से भी कम समय बाद आए इस फैसले ने इसे चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को झटका लगा है। हालांकि उन्होंने शीर्ष अदालत में आदेश को चुनौती देने की बात कही है।
एक याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने पीठ द्वारा खुली अदालत में अपना फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘फैसले का अध्ययन करने के बाद हम उच्चतम न्यायालय का रुख करेंगे।’’
राज्य में सत्तारूढ़ महागठबंधन में इस फैसले के बाद खुशी देखी गयी। विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने देशव्यापी जाति गणना को अपने प्रमुख एजेंडे के तौर पर स्वीकार किया है।
राज्य के उपमुख्यमंत्री एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने ट्विटर पर कहा, “हमारी सरकार के जाति आधारित सर्वे से प्रामाणिक, विश्वसनीय और वैज्ञानिक आंकड़े प्राप्त होंगे। इससे अतिपिछड़े, पिछड़े तथा सभी वर्गों के गरीबों को सर्वाधिक लाभ प्राप्त होगा।”
उन्होंने कहा, “ जातीय गणना आर्थिक न्याय की दिशा में बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम होगा। हमारी मांग है कि केंद्र सरकार जातीय गणना करवाए।”
उपमुख्यमंत्री ने सवाल किया, “ ओबीसी प्रधानमंत्री होने का झूठा दंभ भरने वाले, देश की बहुसंख्यक पिछड़ी और गरीब आबादी की जातीय गणना क्यों नहीं कराना चाहते?
बाद में पत्रकारों से बातचीत के दौरान यादव ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक फैसला है। उच्च न्यायालय ने महागठबंधन सरकार के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। यह स्वागत योग्य निर्णय है। हमारी लड़ाई समाज के पिछड़े लोगों को मुख्यधारा में लाने की है। जब जाति आधारित सर्वेक्षण होगा, तो स्पष्टता आएगी और उसी आधार पर सरकार योजनाएं बनाएगी और उन तक सुविधाएं पहुंचाएगी।
उन्होंने दावा किया, ‘‘भाजपा जातिगत गणना को रोकना चाहती थी। मैं ऐसा करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद को धन्यवाद देता हूं।’’
राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अदालत के फैसले को स्वागत योग्य बताते हुए कहा, ‘‘ यह सिर्फ एक फैसला नहीं है बल्कि गरीबों के पक्ष में निर्णय है। इससे गरीबों के लिए रास्ते अब खुलेंगे। उनका सर्वेक्षण होने के बाद उनकी स्थिति का पता लगेगा कि उनकी आर्थिक स्थिति क्या है और उस आधार पर सरकार उनके लिए योजना बनाएगी और विकास के रास्ते खुलेंगे।
हमलोग इसका स्वागत करते हैं तथा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इसके लिए काफी मेहनत की।’’
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने ट्वीट कर कहा, ‘‘जातीय गणना के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज की है, उसका स्वागत है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा जातीय गणना रोकने का षडयंत्र विफल हुआ और जातीय गणना का रास्ता प्रशस्त हुआ। जातीय गणना राज्य हित में है और यह पूरे देश में होनी चाहिए।’’
बिहार की नीतीश सरकार का बाहर से समर्थन कर रही भाकपा माले के राज्य सचिव कुणाल ने उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘इससे सामाजिक न्याय की घोर विरोधी भाजपा को झटका लगा है। हम तो चाहते हैं कि बिहार सहित पूरे देश में ही जाति आधारित गणना हो।’’
बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल माकपा के राज्य सचिव ललन चौधरी ने अदालत के फैसले का स्वागत किया और भाजपा पर इसमें अड़ंगा लगाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अदालत के निर्णय के बाद सामाजिक सच्चाई सामने आएगी।
इस बीच बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा ने संवाददाताओं से कहा, “हम उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। यह याद रखना चाहिए कि भाजपा ने हमेशा जाति आधारित गणना का समर्थन किया है।’’
भाजपा नेता ने कहा, ‘‘लेकिन अगर सरकार जातीय तनाव पैदा करने और अपनी विफलताओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए जाति आधारित गणना का इस्तेमाल करती है तो हम सरकार का समर्थन नहीं करेंगे। हम सर्वेक्षण के निष्कर्षों को सार्वजनिक करने के लिए सरकार पर दबाव भी डालते रहेंगे।