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Manipur के बेथेल गांव के लोगों ने जंगल में अस्थायी शिविर में पनाह ली

मणिपुर की राजधानी इंफाल से 30 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित बेथेल गांव में अब तक शांति थी लेकिन मौजूदा हालात के कारण अन्नू डाउंगेल (67) और उनके परिवार के पांच सदस्यों ने आनन-फानन में थोड़े चावल और कुछ बर्तनों के साथ सामान बांधा और पैदल ही जंगल की ओर निकल गए।
सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त डाउंगेल और उनके पति अब अपने पोते-पोतियों तथा बेटों के साथ तिरपाल और बांस से बने अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं। जब वे जल्दबाजी में घर से निकले तो परिवार के अन्य सदस्य घर पर मौजूद नहीं थे।

वह घर से थोड़े-बहुत चावल ले आयी थीं लेकिन बाकी चीजों के लिए वे जंगल पर निर्भर हैं जैसे नदियों से पानी और जंगल में पेड़-पौधों से सब्जियां लाना।
डाउंगेल ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम गैर-मेइती लोगों द्वारा गांवों पर हमलों के बाद बृहस्पतिवार तड़के निकले थे। हमने सुना था कि बंदूकों तथा हथियारों से लैस समूह आ रहा है और एक के बाद एक गांव को जला रहा है।’’
डाउंगेल और उनके परिवार ने गोलियों की आवाज सुनने के बाद कोंगपोकपी जिले में दूरवर्ती बेथेल गांव में अपना घर छोड़ दिया। उनका परिवार उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं जिन्हें जंगल में शरण लेनी पड़ी।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने चावल और कुछ बर्तनों के साथ अपने बैग बांधे और अंधेरे में दो घंटे तक पैदल चलते रहे जब तक कि हमें यह नहीं लगा कि हम पर्वतीय क्षेत्र में एक सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए हैं।’’
सुबकते हुए डाउंगेल ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद बेथेल में लौटने का उनका सपना एक दु:स्वप्न में बदल गया। रोष में उन्होंने मांग की कि उनके जैसे विस्थापित लोगों को अपनी रक्षा के लिए बंदूक दी जाए।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां मैं उस गांव से भाग रही हूं जो मैंने सोचा था कि सेवानिवृत्ति के बाद रहने के लिए सबसे शांतिपूर्ण जगह है। कृपया सेना भेजिए और उन्हें हमें बंदूक देने के लिए कहें ताकि हम अपनी रक्षा कर सकें।’’
अब तक शांतिपूर्ण रहे बेथेल गांव में करीब 35 परिवार हैं और डाउंगेल के अनुसार हर कोई गांव छोड़कर जा चुका है।

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