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“पिचवई” सनातन धर्म का चित्रकला के माध्यम से प्रतिनिधित्व करनेवाली एक कला है : मगनभाई पटेल

सर्कल ऑफ़ आर्ट योग्य शिक्षित कलाकारों द्वारा संचालित एक कला संगठन है जो वर्षों से कार्य कर रहा है जिसमे करीब 50 से ज्यादा कलाकार सदस्य है। जिसमें प्रीतिबेन कनेरिया,अजयभाई चौहान और राजेशभाई बरैया जैसे डिप्लोमा और मास्टर डिग्रीवाले कलाकार शामिल हैं। जिन्होंने हाल ही में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए अहमदाबाद में एक विजुअल आर्ट गैलरी में पेंटिंग प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसमें सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज,शाम सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष और ऑल इंडिया एम.एस.एम.ई फेडरेशन के प्रमुख मगनभाई पटेल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। मगनभाई पटेल और उपस्थित अन्य गणमान्य व्यक्तियोंने दीप प्रज्वलित कर इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया।इस प्रदर्शनी में लगभग 60 प्रतिभागियों ने अपने चित्र प्रदर्शित किये थे। 
मगनभाई पटेलने उनकी कला कौशल का बारीकी से निरीक्षण किया और इस संबंध में अपने आवश्यक सुझाव दिए और कहा कि इस संस्थान को पंजीकृत किया जाना चाहिए और सरकार भी इस तरह की परियोजनाओं को बहुत मदद करती है। इस संस्था मे अधिकांश बहनें हैं इसलिए सखी मंडल बनाकर इस कला का व्यवसायीकरण किया जा सकता है,ताकि चित्रकारों को आर्थिक सहायता मिल सके और वे रोजगारोन्मुखी कार्य कर सकें। 
मगनभाई पटेलने अपने भाषण में आगे कहा कि भारतीय कला एक रंगीन टेपेस्ट्री की तरह है जो कहानियों,भावनाओं और हमारी विविध संस्कृति और इतिहास के साथ गहरे संबंध से बुनी गई है। ये कलाकृतियाँ न केवल दिखने में सुंदर हैं बल्कि किसी व्यक्ति के जीवन के बारे में कहानियाँ और भावनाएँ भी व्यक्त करती हैं। इन कलाकृतियों का सांस्कृतिक और भावनात्मक मूल्य भी है। हमारे देश में कई कलाकारों की पेंटिंग हैं जिन्हें सबसे महंगी पेंटिंग का दर्जा प्राप्त है।
इस अवसर पर मगनभाई पटेलने चित्रकला के महत्व के लिए भारतीय चित्रकारों का उदाहरण दिया और कहा कि अमृता शेरगिल की “द स्टोरी टेलर” ने दिल्ली में सैफ्रन आर्ट गैलरी द्वारा आयोजित नीलामी में 61.8 करोड़ रुपये कमाए। वीएस गायतोंडे का शीर्षकहीन कलाकृति जो प्रकाश,संरचना,रंग और स्थान का नाजुक संतुलन प्रदर्शित करती है, जिसे नीलामी में 48.3 करोड़ रुपये मिले। कैनवास पर तैयार की गई तैयब मेहता की कलाकृति “रिक्शा से बंधा बैल” को 41.97 रुपये की धनराशि प्राप्त हुई ।एफ.एन.सोझा की पेंटिंग ‘हंगर’ ने हस्ताक्षर शैली का प्रतिनिधित्व करते हुए 34.5 करोड़ रुपये की शानदार कमाई की है जब की सैयद हैदर रज़ा की ‘सौराष्ट्र’ नामक कलाकृति को वर्ष 2010 में करीब 27 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई थी।इस प्रकार उपरोक्त उदाहरणों से हमें अहसास होता है कि इस संगठन की तस्वीरें देखकर यह पता चलता है कि यदि इसे पेशेवर बनाया जाए तो इतनी बड़ी रकम शायद न मिले लेकिन रोजगारोन्मुख क्षेत्र जरूर बन सकता है।यदि एक अच्छा प्रशिक्षण संस्थान,प्रदर्शनी केंद्र बनाये जाए तो इस क्षेत्र में आर्थिक,सामाजिक और धार्मिक परिणामोन्मुखी कार्य किया जा सकता है।
मगनभाई पटेलने “पिचवई” के बारे में अपने विचार प्रगट करते हुए कहा की विभिन्न कलाकारों द्वारा कपड़े पर उकेरी गई पेंटिंग के विभिन्न रूपों में से एक को “पिचवई” के नाम से जाना जाता है।यह एक प्रकार की चित्रकला है जिसकी उत्पत्ति राजस्थान के नाथद्वारा में हुई थी।नाथद्वारा के स्थानीय कलाकारोंने भगवान कृष्ण की धार्मिक कहानिया और कथाओ से प्रेरणा ली जिसके कारण पिचवई पेंटिंग का जन्म हुआ।”पिचवई” का शाब्दिक अर्थ है ‘वह जो पीछे से लटकता है’, संस्कृत शब्द “पिच” का अर्थ है पीछे और “वई” का अर्थ है लटकना।पिछवई को आमतौर पर पुष्टिमार्गीय भक्ति संप्रदाय के हिंदू मंदिरों में श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे लटकाया जाता है, जो भगवान कृष्ण और उनकी लीलाओं के स्थानीय रूप का प्रतिनिधित्व करता है।
मगनभाई पटेलने “पिचवाई” पेंटिंग के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस पेंटिंग में जैविक रंगों के साथ-साथ विभिन्न पौधों की पत्तियों के रंगों का भी उपयोग किया जाता है।इन चित्रों में सनातन धर्म यानि वैष्णव संप्रदाय के भगवान श्रीनाथजी के विभिन्न स्वरूपों जैसे श्रीनाथजी की बाल अवस्था जिसमें उन्हें नहलाना, खिलाना, झुलाना जैसी लीला का सुंदर चित्रण किया जाता है। इस कला संस्कृति और कलाकारों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को देश में विपणन केंद्र और अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों जैसे कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए और उन्हें अपनी कला के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और इस क्षेत्र को हर संभव मदद देनी चाहिए।
मगनभाई पटेल ने “पिचवाई” पेंटिंग के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस पेंटिंग में जैविक रंगों के साथ-साथ विभिन्न पौधों की पत्तियों के रंगों का भी उपयोग किया जाता है।इन चित्रों में सनातन धर्म यानि वैष्णव संप्रदाय के भगवान श्रीनाथजी के विभिन्न स्वरूपों जैसे श्रीनाथजी की बाल अवस्था जिसमें उन्हें नहलाना,खिलाना,झुलाना जैसी लीला का सुंदर चित्रण किया जाता है।यदि इन चित्रों को व्यावसायिक रूप से विपणन किया जाए और प्रदर्शनी घरों में रखा जाए और उचित रूप से व्यावसायीकरण किया जाए और यदि हम इस क्षेत्र को विकसित करते हैं, तो राजस्व बढ़ेगा और यह एक मूल्य वर्धित उत्पाद बन जाएगा और यह एक रोजगार उन्मुख क्षेत्र भी बन सकता है साथ ही सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार भी हो सकता है ताकि लोग इसे समझ सकें।
मगनभाई पटेल ने आगे कहा कि आज देश में घनश्याम शर्मा,राजाराम शर्मा,रघुनंदन शर्मा,सुरेश शर्मा, परमानंद शर्मा,कल्याणमन साहू और कई अन्य प्रसिद्ध कलाकार उभरे हैं जिन्होंने कला की दुनिया में भारतीय कला संस्कृति को गौरवान्वित किया है।आज हमारे देश में 300 से भी अधिक कलाकार नाथद्वारा में रहकर अपनी कला का अभ्यास कर रहे हैं, आज राजस्थान के अलावा देश के कई अन्य राज्यों में भी कलाकार इस कला का अनुसरण कर रहे हैं।
यह संस्था कला के विभिन्न क्षेत्रों के कलाकारों को एक मंच पर लाकर उनकी कृतियों को बेचकर उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रयास करती है।इसके अलावा संस्था दिव्यांग बच्चों के लिए ड्राइंग वर्कशॉप का आयोजन करती है और रिमांड होम के बच्चों को ड्राइंग सिखाने के लिए वर्कशॉप का भी आयोजन करती है साथ ही नए-नए विषयों जैसे छतरी पर पेंटिंग,कपड़े के थैले पर पेंटिंग,लकड़े के पंछीघर पर पेंटिंग पर जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित करती है ये सभी कलाकार गुजरात के अलावा जयपुर,दिल्ली,उदयपुर,मुंबई,गोवा जैसे राज्यों में कई ग्रुप शो भी कर चुके हैं।
इस चित्र प्रदर्शनी में सुप्रसिद्ध गुजराती गायक अरविन्दभाई वेगड़ा, सुप्रसिद्ध कलाकार एवं कार्टूनिस्ट वी.रामानुज भी विशेष रूप से उपस्थित थे साथ ही तीन दिनों तक चली इस प्रदर्शनी को रोजाना 250 से भी ज्यादा लोगोंने देखा जिसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (NID) और आई.आई.एम् (I.I.M) से भी कई लोग आए थे।

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