बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को वह जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी, जिसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके परिवार के खिलाफ आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में जांच की मांग की गयी थी।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर यह कहते हुए 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया कि जनहित याचिका में कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है और यह कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ और नहीं है।
शहर निवासी गौरी भिड़े की जनहित याचिका में मांग की गयी कि पूर्व मुख्यमंत्री और उनके परिवार के खिलाफ संपूर्ण और निष्पक्ष जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) तथा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को निर्देश दिया जाए।
स्वयं को ‘गंभीर और सतर्क’ नागरिक बताते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि वह आय से अधिक संपत्ति का पता लगाने में भारत सरकार की मदद करना चाहती हैं।
न्यायमूर्ति धीरज ठाकुर और न्यायमूर्ति वाल्मीकि मेनेजिस की एक खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि इसने ऐसा कोई सबूत नहीं दिया, जो अदालत को यह निष्कर्ष निकालने का आधार दे सके कि सीबीआई या किसी अन्य केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका में कहा गया कि भिड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लड़ाई से प्रभावित हुई हैं और उन्होंने दावा किया कि उनके पास यह दिखाने के लिए सबूत हैं कि ठाकरे परिवार ने अवैध तरीके से संपत्ति जमा की है।
इसमें दावा किया गया कि उद्धव ठाकरे और उनके परिवार ने कभी अपनी आय के आधिकारिक स्रोत के रूप में किसी सेवा, पेशे या व्यापार का खुलासा नहीं किया है।
ठाकरे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आस्पी चिनॉय और अशोक मुंदरगी ने दलील दी कि धारणाओं के आधार पर जनहित याचिका दायर की गयी है और इसमें कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।