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ईटानगर । अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) के. टी. परनाइक ने राज्य के राजकीय पशु मिथुन की संख्या में आ रही कमी के मद्देनजर रविवार को इन्हें विलुप्ति से बचाने के लिए नीति और संस्थागत समर्थन की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। ‘मिथुन दिवस’ के दूसरे संस्करण और ‘पूर्वोत्तर में किसानों की आय बढ़ाने के लिए एकीकृत मिथुन पालन’ पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए परनाइक ने कहा कि इस जानवर को पर्याप्त समर्थन नहीं मिला है, जिसका कारण संभवतः इसकी कम आबादी और स्थानीय उपस्थिति है।
परनाइक ने कहा, ‘‘समर्थन के अभाव के कारण आवासों का दोहन और विनाश हुआ है, जिससे इनकी पहले से ही कम होती संख्या के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मिथुन के संरक्षण प्रयासों में पारंपरिक प्रथाओं को आधुनिक संरक्षण तकनीकों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। राज्यपाल ने ‘विशेष भूमि उपयोग नीति’ बनाने और मिथुन संरक्षण के लिए क्षेत्रों को आरक्षित करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने सुझाव दिया कि दो-तीन गांवों के समूहों के बीच रणनीतिक रूप से अहम स्थानों पर सामुदायिक मिथुन पालन केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए।
उन्होंने मिथुन अनुसंधान और विकास के लिए एक पायलट परियोजना बनाने हेतु वैज्ञानिकों, किसानों और अधिकारियों के साथ गहन विचार-विमर्श की भी अनुशंसा की, जिसमें मिथुन किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए। परनाइक ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में पूर्वोत्तर राज्यों में मिथुन की सबसे ज्यादा संख्या है, जो वैश्विक संख्या का 89 प्रतिशत है।
उन्होंने इस अनोखे जानवर को पालने के लिए राज्य के किसानों और लोगों पर गर्व व्यक्त किया। राज्यपाल ने मिथुन को शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बताया, जिसका उल्लेख अक्सर आदिवासी पौराणिक कथाओं और लोककथाओं में किया जाता है परनाइक ने मिथुन दूध और उसके उत्पादों के लिए सहकारी समितियां बनाने और आधुनिक उपकरणों के साथ चमड़ा बनाने के कारखाने स्थापित करने का सुझाव दिया, ताकि वध के बाद अक्सर फेंके जाने वाले चमड़े और खाल का उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि इन उत्पादों में निर्यात के लिए उच्च गुणवत्ता वाले कोट, चटाई और जूते शामिल हो सकते हैं।