Breaking News

राजनीतिक दलों ने निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण योजना को लेकर आयोग की आलोचना की

असम में विधानसभा एवं संसदीय सीटों के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा मसौदा परिसीमन प्रस्ताव प्रकाशित किये जाने के एक दिन बाद बुधवार को सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्षी दलों ने निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण करने की योजना की आलोचना की।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने अपने जलुकबाड़ी निर्वाचन क्षेत्र को तीन भागों में बांटे जाने पर दुख व्यक्त किया, जबकि विपक्ष ने निर्वाचन आयोग की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि निकाय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ‘‘वोट बैंक की रक्षा करने की साजिश’’ के तहत ‘‘उसकी विस्तारित शाखा’’ के रूप में कार्य कर रहा है।
निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को असम के लिए परिसीमन मसौदा दस्तावेज जारी करते हुए पूर्वोत्तर राज्य में विधानसभा सीट की संख्या 126 और लोकसभा सीट की संख्या 14 पर बरकरार रखने का प्रस्ताव दिया। राज्य में राज्यसभा की सात सीटें हैं।

मसौदे के अनुसार, निर्वाचन आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित विधानसभा सीटें आठ से बढ़ाकर नौ और अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित सीटें 16 से बढ़ाकर 19 की जाए। दो संसदीय क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए तथा एक क्षेत्र को अनुसूचित जाति वर्ग के लिए सुरक्षित करने का प्रस्ताव किया गया है।
आयोग ने अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों, विधानसभा और लोकसभा दोनों की भौगोलिक सीमाओं में बदलाव की भी योजना बनाई है, जबकि कुछ सीटों को समाप्त करने और कुछ नयी सीटें बनाने का प्रस्ताव है।
शर्मा ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘ईसीआई (निर्वाचन आयोग) द्वारा प्रकाशित मसौदा परिसीमन यह निर्धारित करता है कि वर्तमान जलुकबाड़ी निर्वाचन क्षेत्र, जिसका मैंने 2001 से प्रतिनिधित्व किया है, अब अस्तित्व में नहीं रहेगा क्योंकि इसे तीन भागों में विभाजित कर दिया गया है।’’
शर्मा ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘मैं इस खबर से बहुत दुखी हूं।

हालांकि, मैं मसौदे का स्वागत करता हूं क्योंकि यह असम की भावनाओं को सटीक रूप से दर्शाता है।’’
उन्होंने बाद में संवाददाताओं से कहा कि प्रस्तावों के कार्यान्वयन के साथ, मूल समुदायों के हितों को भविष्य के लिए संरक्षित किये जाने के साथ असम ‘‘राजनीतिक रूप से संरक्षित’’ होगा।
असम कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन कुमार बोरा ने निर्वाचन आयोग पर ऐसे समय जल्दबाजी में मसौदा प्रकाशित करने के लिए सवाल उठाया कि जब मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों ने माननीय उच्चतम न्यायालय का रुख किया, और शीर्ष अदालत ने अंतिम सुनवाई के लिए 25 जुलाई 2023 की तारीख तय की है। इसलिए, जबकि मामला विचाराधीन है, यह आश्चर्यजनक है और माननीय उच्चतम न्यायालय का सीधा निरादर है कि निर्वाचन आयोग उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार किए बिना एक मसौदा परिसीमन दस्तावेज लेकर आया है।’’

बोरा ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस ने परिसीमन का कभी भी सैद्धांतिक रूप से विरोध नहीं किया, लेकिन उसने इस साल एक जनवरी को दिल्ली में निर्वाचन आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की थी और विभिन्न पहलुओं पर स्पष्टीकरण मांगा था।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, वे हमें जवाब देने में विफल रहे … क्या यह नहीं दिखाता है कि निर्वाचन आयोग भाजपा की विस्तारित अंग की तरह काम कर रहा है?’’
सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल असम गण परिषद के प्रदीप हजारिका ने मसौदा प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया, जिसमें ऊपरी असम में उनके निर्वाचन क्षेत्र अमगुरी समाप्त कर दिया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘अमगुरी का ऐतिहासिक महत्व है और हम निर्वाचन क्षेत्र को पूरी तरह से समाप्त करने को स्वीकार नहीं कर सकते। इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता। हम इस कदम का विरोध तब करेंगे जब निर्वाचन आयोग के सदस्य अगले महीने असम का दौरा करेंगे।’’
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार और निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडेय और अरुण गोयल जुलाई में मसौदा प्रस्ताव पर जन सुनवाई के लिए असम का दौरा करने वाले हैं।

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने भी निर्वाचन आयोग के फैसले पर अप्रसन्नता जतायी। धुबरी से लोकसभा सदस्य एवं पार्टी प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने आरोप लगाया कि मसौदा भाजपा की योजना के अनुसार तैयार किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘योजना असम के परिदृश्य से एआईयूडीएफ को खत्म करने की है। इससे भाजपा और कांग्रेस दोनों को फायदा होगा। हम निर्वाचन आयोग के अधिकारियों से मिलेंगे और प्रस्तावों का विरोध करेंगे। हम आवश्यक कदमों पर कानूनी विशेषज्ञों के साथ चर्चा करेंगे।’’
एआईयूडीएफ के संगठनात्मक महासचिव एवं विधायक अमीनुल इस्लाम ने कहा कि असम में पिछला परिसीमन 1976 में 1971 की जनगणना के आधार पर हुआ था।
उन्होंने कहा, ‘‘अब 2023 है और परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर हो रहा है। इसका मतलब 20 साल से अधिक का अंतराल है। 2011 की जनगणना क्यों नहीं लेते? यह अभ्यास बीच में क्यों किया जा रहा है?’’
उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2026 में देश भर में परिसीमन होगा।

विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों में वृद्धि होगी। यह तब क्यों हो? यदि 2026 में ऐसा नहीं होगा, तो असम अधिक सीटों से वंचित हो जाएगा।’’
इस्लाम ने यह भी आरोप लगाया कि मसौदा प्रस्ताव में कई विसंगतियां हैं, क्योंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए कोई तर्क नहीं दिया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘सीट परिवर्तन राजनीतिक रूप से प्रेरित निर्णय हैं। ऊपरी असम में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया है। अधिकांश परिवर्तन निचले और मध्य असम में लागू किए गए हैं, जहां मुस्लिमों की अधिक आबादी है। मुख्य प्रयास मुस्लिम बहुल सीटों की संख्या को कम करने का है।’’
रायजोर दल के विधायक अखिल गोगोई ने भी मसौदा दस्तावेज की निंदा की और आरोप लगाया कि इसे ‘‘भाजपा के विचार’’ के आधार पर तैयार किया गया है।
उन्होंने दावा किया, ‘‘परिसीमन भाजपा की जरूरतों के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्रों की जनसांख्यिकी को बदलकर किया गया है। भाजपा की मसौदा रिपोर्ट और निर्वाचन आयोग का मसौदा लगभग समान हैं।

बढ़ी हुई अनुसूचित जनजाति सीटें बंगाली हिंदुओं को जगह देंगी, मूल लोगों को नहीं।’’
असम जातीय परिषद (एजेपी) के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि मसौदा प्रस्ताव बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और षड्यंत्रकारी है, जैसा कि पार्टी ने निर्वाचन आयोग से कहा था कि 2001 की जनगणना के आधार पर परिसीमन असम के मूल निवासी समुदाय समाप्त कर देगा।’’
निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने 26-28 मार्च को असम का दौरा किया था और परिसीमन कवायद के संबंध में राज्य में राजनीतिक दलों, जनप्रतिनिधियों, नागरिक समाज के सदस्यों, सामाजिक संगठनों के साथ बातचीत की थी।
कुल मिलाकर, 11 राजनीतिक दलों और 71 अन्य संगठनों से अभ्यावेदन प्राप्त हुए और उन पर विचार किया गया।

Loading

Back
Messenger