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राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का सागर, जहां हर व्यक्ति दुखी है, नितिन गडकरी ने ऐसा क्यों कहा?

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोलते हुए राजनीति के क्षेत्र में संतुष्टि की खोज पर अपना दृष्टिकोण साझा किया। इसे असंतुष्ट आत्माओं का सागर बताते हुए उन्होंने बताया कि कैसे पार्षदों से लेकर मुख्यमंत्रियों तक लोग अक्सर अपनी उपलब्धियों के बावजूद खुद को असंतोष से जूझते हुए पाते हैं। उन्होंने कहा कि विधायक नहीं बनने से पार्षद नाराज हैं। मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किये जाने से विधायक असंतुष्ट हैं। प्रमुख विभाग न मिलने पर मंत्रियों को अधूरापन महसूस होता है और मुख्यमंत्री हमेशा चिंता में रहते हैं। 
 

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नागपुर में ‘जीवन के 50 स्वर्णिम नियम’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर गडकरी ने कहा कि जीवन समझौतों, बाध्यताओं, सीमाओं और विरोधाभासों का खेल है। उन्होंने कहा कि जो मंत्री बनता है वह इसलिए दुखी रहता है कि उसे अच्छा मंत्रालय नहीं मिला और वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाया तथा मुख्यमंत्री इसलिए तनाव में रहता है क्योंकि उसे नहीं पता कि कब आलाकमान उसे पद छोड़ने के लिए कह देगा। उन्होंने कहा कि जीवन में समस्याएं बड़ी चुनौतियां पेश करती हैं और उनका सामना करना तथा आगे बढ़ना ही जीवन जीने की कला है। 
 

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गडकरी ने कहा कि उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की आत्मकथा का एक उद्धरण याद है, जिसमें कहा गया है, ‘‘कोई व्यक्ति तब खत्म नहीं होता जब वह हार जाता है। वह तब खत्म होता है जब वह हार मान लेता है।’’मंत्री ने राजस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम को याद करते हुए कहा कि राजनीति असंतुष्ट आत्माओं का सागर है, जहां हर व्यक्ति दुखी है… जो पार्षद बनता है वह इसलिए दुखी होता है क्योंकि उसे विधायक बनने का मौका नहीं मिला और विधायक इसलिए दुखी होता है क्योंकि उसे मंत्री पद नहीं मिल सका।

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