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Prajatantra: गर्मी के कारण UCC पर जवाब नहीं दे पाए नीतीश, पर्दे के पीछे कोई और खेल तो नहीं!

समान नागरिक संहिता यानी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा काफी गर्म है। 22वें विधि आयोग ने जैसे ही इसको लेकर सुझाव मांगने की बात कही, उसके बाद से इस पर राजनीति तेज हो गई है। एक ओर कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों का साफ तौर पर कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार अपनी नाकामयाबियों को छिपाने और ध्रुवीकरण के लिए इस मुद्दे को हवा देने की कोशिश कर रही है। तो दूसरी ओर भाजपा जोर देते हुए कह रही है कि यह हमारा मुद्दा रहा है और हम इस पर डटे रहेंगे। इन सब के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी इस मुद्दे को लेकर सवाल पूछा गया? एनडीए से अलग होने के बाद लगातार भाजपा पर जबरदस्त तरीके से हमलावर रहने वाले नीतीश कुमार पत्रकारों द्वारा पूछे गए यूनिफॉर्म सिविल कोड के सवाल को यह कहते हुए टाल गए कि बहुत गर्मी है। यह सब बातें बाद में होंगी। 

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यही कारण है कि नीतीश को लेकर फिर से तरह तरह की शंकाएं दौड़ने लगी हैं। वैसे भी नीतीश कुमार को लेकर एक बात राजनीतिक फिजाओं में साफ तौर पर चलती रहती है कि उनके भीतर क्या कुछ चल रहा है इसके बारे में कोई भी क्लियर कुछ नहीं बता सकता है। लेकिन पिछले दिनों यूनिफॉर्म सिविल कोर्ड को लेकर जो नीतीश की पार्टी जदयू की तरफ से स्टेटमेंट आया, उस पर गौर करने वाली बात है। जदयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले केसी त्यागी ने इस मुद्दे पर साफ तौर पर कहा कि समान नागरिक संहिता पर सभी पक्षों से वार्ता करने के बाद ही सहमति बननी चाहिए। यहां गौर करने वाली बात यह है कि कांग्रेस की तरह जदयू केंद्र सरकार पर हमलावर नहीं है। वह बातचीत पर ज्यादा फोकस कर रही है। 

नीतीश ने यूसीसी को लेकर पूछे गए सवाल को पूरी तरीके से टाल दिया तो ही उनकी पार्टी ने सहमति बनाने को लेकर बात कही है। इससे पता चलता है कहीं ना कहीं जदयू समान नागरिक संहिता पर एक सॉफ्ट स्टैंड लेकर चल रही है। इसका बड़ा कारण है वोट बैंक की राजनीति। जदयू या नीतीश कुमार ऐसे किसी भी मुद्दे पर सार्वजनिक तौर पर बोलने से परहेज करेंगे जहां भाजपा को उन्हें हिंदू विरोधी बताने का मौका मिल जाए। बिहार में राजद के साथ गठबंधन के बाद नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती सवर्ण और ओबीसी वोट बैंक को अपने साथ रखना है। यही कारण है कि राजद की तरह नीतीश कुमार और उनकी पार्टी हार्डकोर पॉलिटिक्स पर नहीं चल रही है। पिछले दिनों भी हमने देखा कि किस तरीके से रामचरित मानस को लेकर राजद हमलावर रही तो वहीं नीतीश कुमार की पार्टी ने साफ तौर पर कह दिया था कि यह बर्दाश्त नहीं होगा। खुद नीतीश कुमार ने भी कहा था कि किसी को भी ऐसे मामले पर सोच समझकर बोलना चाहिए। 

धारा 370 के हटने का समय हो या फिर सीएए हो, उस समय नीतीश कुमार की पार्टी जदयू एनडीए में थी। जदयू ने इस मुद्दे को लेकर भाजपा का साथ दिया था। यूसीसी मुद्दे पर भी अपना नरम रुख रखकर जदयू कहीं ना कहीं हिंदू वोटों को अपने पक्ष में लाने की कोशिश करेगी। जदयू के लिए यह बात साफ है कि मुसलमानों का मत उसके नेतृत्व वाली महागठबंधन को मिलेगा लेकिन हिंदुओं का वोट छिटकने का डर है। इसका जदयू को नुकसान होगा। उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह जैसे बड़े नेताओं ने जदयू छोड़ दिया है। इस कारण कुर्मी-कोइरी वोट जिसपर नीतीश का कब्जा हुआ करता था, वह बिखर सकता है। इस कारण भी नीतीश कुमार नरम रुख अख्तियार कर रहे हैं। फिलहाल नीतीश कुमार ऐसे किसी भी मुद्दे को हवा देने की कोशिश नहीं कर रहे हैं जिससे कि भाजपा को उनके खिलाफ बैटिंग करने का बड़ा मौका मिल जाए। 
 

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खैर, यही तो राजनीति है जहां समय और परिस्थितियों को भापंते हुए नेता हर मुद्दे को भुनाने की कोशिश करते हैं। पिछली बातों को भूल जनता भी समय के साथ आगे बढ़ जाती है। यही तो है प्रजातंत्र। 

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