नयी दिल्ली। भारत के चीता बसाने के कार्यक्रम की अल्पकालिक सफलता का आकलन करने के लिए स्थापित छह मानदंडों में से चार को पहले ही पूरा किया जा चुका है। सरकार की एक रिपोर्ट में रविवार को यह बात कही गई।
कार्यक्रम के एक वर्ष पूरा होने पर जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘प्रोजेक्ट चीता’ ने पहले वर्ष के लिए निर्धारित अधिकतर मानदंडों को प्राप्त कर लिया है और यह उचित मार्ग पर है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘यह एक चुनौतीपूर्ण परियोजना है। हालांकि, भारत, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों और प्रबंधकों के ठोस प्रयासों के साथ-साथ तीनों देशों के शीर्ष नेतृत्व के समर्थन से, परियोजना अपने सुनिश्चित पथ पर है।’’
पिछले साल प्रकाशित ‘चीता कार्ययोजना’ में छह अल्पकालिक सफलता मानदंड सूचीबद्ध हैं। इसमें चीतों का 50 प्रतिशत अस्तित्व, ‘होम रेंज’ की स्थापना, कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शावकों का जन्म और परियोजना में स्थानीय समुदायों को जोड़ना शामिल है।
रिपोर्ट में कहा गया कि परियोजना पहले ही चार मानदंडों को पूरा कर चुकी है।
देश में चीतों के विलुप्त होने के बाद उन्हें फिर से बसाने की भारत की महत्वाकांक्षी पहल को रविवार को एक साल पूरा हो गया। यह परियोजना पिछले साल 17 सितंबर को तब शुरू हुई थी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों के एक समूह को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान के एक बाड़े में छोड़ा।
इस परियोजना पर दुनिया भर के संरक्षणवादियों और विशेषज्ञों द्वारा पैनी नजर रखी जा रही है। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो में दो समूहों में 20 चीते लाए गए थे। पहला समूह पिछले साल सितंबर में और दूसरा फरवरी में लाया गया था।
मार्च के बाद से इनमें से छह वयस्क चीतों की विभिन्न कारणों से मौत हो चुकी है। मई में, नामीबिया से लाई गई मादा चीता से पैदा हुए चार शावकों में से तीन की अत्यधिक गर्मी के कारण मृत्यु हो गई।
शेष शावक को भविष्य में वन्य जीवन के लिए मानव देखभाल में पाला जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जंगल में छोड़े गए सभी चीते खुद को माहौल के हिसाब से ढाल रहे हैं और उनके प्राकृतिक व्यवहार में कोई गड़बड़ी नहीं दिखी। इसमें कहा गया है कि कुछ चीतों की मौत जीवाणु संक्रमण, गुर्दे की खराबी, चोटों और गर्मी से हुई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ चीतों के मानव बहुल क्षेत्रों में लंबी दूरी तय करने के बावजूद मुक्त परिस्थितियों में कोई अप्राकृतिक मौत नहीं हुई। अफ्रीका में इस स्तर की परियोजना में स्थानांतरण के बाद ऐसी मौतें आम हैं।