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BJD के टिकट के लिए कतार, कांग्रेस में भी आवेदनों की भरमार, चुनाव से पहले साइकोलॉजिकल वॉरफेयर में उलझी पार्टियां, बीजेपी क्यों इससे दूर

2024 के चुनाव का बिगुल बज चुका है। हर राजनीतिक दल की तरफ से अपने तरकश से सबसे धारदार हथियार आजमाने की कवायद भी शुरू हो गई है। यूं तो चुनावी जंग में सियासी दलों की ओर से वोट जुटाने के लिए लोक-लुभाने पोस्टर, बैनर के प्रयोग किए जाते हैं। सार्वजनकि रैलियां और रोड शो से जनता को साधने के प्रयास होते हैं। हालांकि, बदलती राजनीति के साथ अब ये ट्राइ-टेस्टेड पैटर्न थोड़ा सा बदल सा रहा है। पार्टी टिकटों के लिए आवेदकों की संख्या को प्रदर्शित करने सरीखा एक नया चलन ओडिशा राज्य में देखने को मिल रहा है। सत्तारूढ़ बीजद का दावा है कि उसे 21 लोकसभा और 147 विधानसभा सीटों के लिए दस हजार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं। कांग्रेस का कहना है कि उसे विधानसभा टिकटों के लिए 300 आवेदन मिले हैं और 700 लोगों ने लोकसभा टिकटों के लिए आवेदन किया है। राज्य विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने खुद को इस संख्या बल वाले आंकड़े से दूर रखा है। 

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कांग्रेस-बीजद में से किसके पास ज्यादा सीटों के दावेदार? 
आंकड़ों के जरिए खुद को मजबूत साबित करनेका दौर तब शुरू हुआ जब 25 फरवरी को प्रदेश कांग्रेस कमेटी (ओपीसीसी) के अध्यक्ष शरत पटनायक ने एक विशेष रूप से जारी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म  प्रगमन के माध्यम से उनकी पार्टी को प्राप्त आवेदकों की संख्या बताई। कुछ दिनों बाद, बीजद के आयोजन सचिव प्रणब प्रकाश दास ने दावा किया कि उनकी पार्टी को दस हजार आवेदन प्राप्त हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि बड़ी संख्या में आवेदन पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाते हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल ने हालांकि संभावित उम्मीदवारों से उनकी पार्टी को प्राप्त आवेदनों की संख्या साझा करने से परहेज किया, लेकिन दावा किया कि आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजद सत्ता गंवा देगी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कुछ दिन और रुको भाजपा निश्चित रूप से सरकार बनाएगी क्योंकि बीजद ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण लोगों का विश्वास खो दिया है। 

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साइक्रलॉजिकल बढ़त हासिल करने के गेम में बीजेपी क्यों पीछे
राजनीतिक विश्लेषक संख्या को लेकर लड़ाई को प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल करने की एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति के रूप में देखते हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल एक-दूसरे से आगे निकलना चाहता है। मतपत्रों की लड़ाई से पहले, वे मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने के लिए इस तरह की संख्या में शामिल होते हैं। राजनीतिक विश्लेषक प्रसन्ना मोहंती ने कहा कि वे यह दिखाने के लिए कि उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है, अपनी-अपनी पार्टी में शामिल किए गए नेताओं की संख्या भी दिखाते हैं। इस बीच, राज्य में एक साथ होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले ओडिशा में व्यस्त राजनीतिक बातचीत शुरू हो गई है। हालांकि भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा चुनाव की तारीखों के बारे में औपचारिक अधिसूचना अभी तक घोषित नहीं की गई है, लेकिन प्रमुख राजनीतिक दलों ने पहले ही राज्य में अपनी तैयारी तेज कर दी है। भले ही सत्तारूढ़ बीजद और मुख्य विपक्षी भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन सभी की निगाहें यहां कांग्रेस पर भी हैं कि क्या सबसे पुरानी पार्टी इस बार बेहतर प्रदर्शन कर पाती है या नहीं। 147 सदस्यीय ओडिशा विधानसभा में केवल 9 सीटों के साथ, पार्टी ने इस बार कम से कम 90 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।

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