भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के शोधकर्ताओं ने पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर मृदा अपरदन का आकलन करने का दावा किया है।
आईआईटी दिल्ली के अधिकारियों के अनुसार, पहले मृदा अपरदन आकलन खास क्षेत्रों या जलग्रहण क्षेत्रों में किया जाता था, लेकिन मृदा अपरदन के राष्ट्रीय स्तर पर आकलन की जरूरत थी।
मृदा अपरदन के राष्ट्रीय स्तर पर आकलन का उद्देश्य उन क्षेत्रों की पहचान करना है, जहां की मिट्टी के कटाव का खतरा सबसे अधिक है।
आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के मानवेंद्र सहारिया ने कहा, ‘‘ मृदा अपरदन मृदाकणों के अलग हो जाने की संभाव्यता है और यह वर्षा, जलरिसाव और अपवाह के संयुक्त प्रभाव को दर्शाती है।
यह उन बड़े कारकों में एक है, जिसका उपयोग मृदा हृास का अनुमान लगाने में किया जाता है..।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मृदा अपरदन की प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब जमीन पर वर्षा होती है या जब पानी का प्रवाह अपने साथ मृदाकणों को बहाकर ले जाता है..। अब हमने मृदा अपरदन का राष्ट्रीय स्तर पर आकलन कर लिया है, जो देश में पहली बार किया गया है।’’
सहारिया, उनके सहयोगी सुमेधा चकमा और पीएचडी शोधार्थी रवि राज का यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका ‘कैटेना’ में प्रकाशित हुआ है।
इसमें भारत में मिट्टी के कटाव की स्थानिक भिन्नता और भारत में मिट्टी के गुणों के साथ इसके संबंधों का पता लगाया गया है।
सहारिया ने कहा, ‘‘ मृदा अपरदन भूमि क्षरण का बड़ा कारक है तथा एक बड़ा भू- पर्यावरण मुद्दा है। उसके कारणों और प्रभावों आकलन करने से हमें राष्ट्रीय मृदा संरक्षण योजना विकसित करने में मदद मिलेगी, जो हमारे महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र के लिये मददगार हो सकती है।