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हवाईअड्डों व एयरलाइंस के राजस्व साझा करने से उन्हें पर्यावरण अनुकूल बनाया जा सकता है: अध्ययन

भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), लखनऊ और लिवरपूल विश्वविद्यालय के एक नये अध्ययन में पाया गया है कि हवाई अड्डों और विमानन कंपनियों द्वारा राजस्व साझा करने से उन्हें पर्यावरण-अनुकूल बनने में मदद मिल सकती है और विमानन क्षेत्र के विकास को स्थायी बढ़ावा मिल सकता है।
अध्ययन के अनुसार, आईआईएम लखनऊ के नेतृत्व में किया गया यह अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे एयरलाइंस और हवाई अड्डे विभिन्न समझौतों के माध्यम से सहयोगात्मक रूप से सतत विकास हासिल कर सकते हैं। इतना ही नहीं, सरकार भी कर लगाकर एवं इस क्षेत्र को अधिक हरा-भरा बनाकर एक समग्र मार्गदर्शक के रूप में कार्य कर सकती है।

यह अध्ययन यूरोपियन जर्नल ऑफ ऑपरेशनल रिसर्च एंड ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
आईआईएम लखनऊ के एसोशिएट प्राध्यापक सुरेश जाखड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘भारत में विमानन कंपनियां ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए ईंधन दक्षता में सुधार पर काम कर रही हैं। इसमें ईधन की दृष्टि से किफायती विमान को अपनाना, उड़ान मार्गों को उपयोगी बनाना और परिचालन प्रथाओं को लागू करना शामिल है, जो ईंधन की खपत कम करते हों, विमान के हैंगर से रनवे तक आने-जाने का समय कम करते हों और लैंडिंग अनुमतियों में देरी के दौरान अनावश्यक ईंधन खपत को कम करने के लिए प्रक्रियाओं को लागू करते हों।’’

अक्टूबर 2021 से, वैश्विक विमानन उद्योग ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को नगण्य करने का संकल्प लिया है। यह ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के पेरिस समझौते के उद्देश्य के अनुरूप है।
अध्ययन के अनुसार, विमानन उद्योग में, एक एयरलाइन का प्रदर्शन हवाई अड्डे की मांग को निर्धारित करता है, जबकि हवाई अड्डे को आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करके एयरलाइन को सुविधा प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
इसमें कहा गया है कि इस अंतर-निर्भरता को अच्छी तरह से समन्वित किया जाना चाहिए, जिसके विफल होने पर आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक विकास सीमित हो जाएगा।

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