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एशियाई खेलों में भातीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन अच्छा देखने को मिल रहा है। एशियन गेम्स का आयोजन इस बार चीन के हांगझोउ में हो रहा है। इस टूर्नामेंट में कई भारतीय खिलाड़ियों में दमदार प्रदर्शन किया है। भारत की झोली में कई मेडल्स भी डाले है। ऐसे ही मैडल दिलाने वाली खिलाड़ी हैं नाओरेम रोशिबिना देवी जिन्होंने वुशु स्पर्धा में रजत पदक जीतने में सफलता पाई है।
नाओरेम रोशिबिना देवी का पदक जीतने से अधिक उनके आंसूओं की चर्चा हो रही है। पदक जीतने के बाद रोशिबिना अपने आसूंओं को रोक नहीं पाई। वैसे तो कई खिलाड़ी जीत के बाद आंसू छलका देते हैं मगर रोशिबिना के आंसू के पीछे का कारण उनकी जीत नहीं बल्कि दर्द था। मणिपुर के हालातों के कारण जीत के बाद भी उनके आंसू छलक आए।
जीत के बाद उन्होंने कहा कि मणिपुर के बारे में नहीं सोचा उनके लिए काफी मुश्किल था। उनका राज्य जातीय हिंसा की आग में लंबे समय से जल रहा है। रोशिबिना देवी ने कहा कि खेलने के दौरान बहुत मुश्किल था कि वह अपने परिवार की चिंता ना करें उनके बारे में ना सोचे। उन्होंने कहा कि अपने अंदर चल रही दर को अपने मां पर हावी नहीं होने देना उनके लिए बहुत ज्यादा मुश्किल था। हालांकि काफी कोशिशें के बाद उन्होंने अपने खेल पर ध्यान लगाया और पदक जीतने में सफल रही।
बाइस साल की रोशिबिना ने गुरुवार के रजत पदक जीतने के बाद कहा, ‘‘किसी भी समय कुछ भी हो सकता है।’’ चीन में मणिपुर की इस खिलाड़ी ने अपनी उपलब्धि का जश्न भी नहीं मनाया। रोशिबिना ने कहा, ‘‘मेरे परिवार का कोई सदस्य या रिश्तेदार हिंसा से प्रभावित नहीं है लेकिन मेरा गांव पिछले लगभग पांच महीने से उबल रहा है। मणिपुर मई से मुश्किल में है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। इसलिए मैं अपने माता-पिता और भाई-बहनों को लेकर चिंतित हूं।’’ चार महीने से अधिक समय से रोशिबिना के आसपास के लोग उन्हें हिंसाग्रस्त मणिपुर में उस संघर्ष से बचाने की कोशिश कर रहे हैं जिसका सामना उनके परिवार को करना पड़ रहा है जिससे कि वह अपने खेल पर ध्यान केंद्रित कर सकें। यह रणनीति काम कर गई जब उन्होंने वुशु की सांडा 60 किग्रा स्पर्धा में रजत पदक जीता।
उन्होंने इंडोनेशिया में 2018 एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता था। मणिपुर में तीन मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुक है जबकि कई सौ लोग घायल हुए हैं। राज्य में अधिक जनसंख्या वाले मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के खिलाफ निकाले गए ‘आदिवासी एकता मार्च’ के बाद हिंसा शुरू हुई। मैतेई समुदाय से ताल्लुक रखने वाली रोशिबिना ने कहा, ‘‘हिंसा नहीं रुकी है, यह सिर्फ बढ़ ही रही है। मुझे नहीं पता कि यह कब रुकेगी। मैंने इसके बारे में अधिक नहीं सोचने का प्रयास किया लेकिन इसका मुझ पर असर पड़ता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं भारत के लिए खेलती हूं और मैं मणिपुर में हालात सामान्य करने में मदद का आग्रह करती हूं।’’
रोशिबिना का गांव बिष्णुपुर के जिला मुख्यालय से लगभग चार किमी दूर है जो चूरचंदपुर से लगभग 35 किमी दूर है। बिष्णुपुर और चूरचंदपुर मणिपुर में हिस्सा से सबसे अधिक प्रभावित जिलों में शामिल हैं। चूड़चांदपुर कुकी बहुल क्षेत्र है। दोनों समुदायों के बीच संघर्ष में कई लोग मारे गए हैं और कई घायल हुए हैं। प्रत्येक परिवार को अपने गांवों की सुरक्षा के लिए एक सक्षम पुरुष और महिला को भेजना होता है और रोशिबिना के माता-पिता भी इसके अपवाद नहीं हैं। रोशिबिना के छोटे भाई नाओरेम प्रियोजीत सिंह ने मणिपुर से कहा, ‘‘मेरी मां मीरा पैबिस (महिला मशाल वाहक) के हिस्से के रूप में आत्म सुरक्षा गतिविधियों में भाग लेती हैं और मेरे पिता भी हमारे गांव में गश्त और सड़कों और गलियों की देखभाल में भाग लेते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम उसे मणिपुर में तनावपूर्ण स्थिति के बारे में ज्यादा नहीं बताते क्योंकि इससे उसके खेल पर असर पड़ेगा। उसने पिछले हफ्ते फोन किया था लेकिन मेरे माता-पिता ने उसे केवल अपने खेल पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा था।