Breaking News

Republican Party of India (A): दलितों के हितों के लिए बनी थी RPI(A), अब राजनीतिक उपस्थिति कायम करने में भी फेल

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) की स्थापना साल 1956 में डॉ बी आर अंबेडकर के विजन के आधार पर हुई थी। इस पार्टी की जड़ें अनुसूचित जाति संगठन से जुड़ी हैं। हालांकि आज आरपीआई (ए) करीब 40 गुटों में बंट चुकी RPI में सबसे बड़ा गुट है। एक फीसदी से भी कम वोट शेयर के साथ यह किसी पार्टी के बजाय एक सामाजिक कल्याण संगठन के तौर पर ज्यादा सक्रिय नजर आती हैं। इस महीने आरपीआई (ए) की राजनीतिक छवि को एक बड़ा झटका तब लगा, जब महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृ्तव वाली शिवसेना ने इस पार्टी से दामन छुड़ा लिया। जिससे अठावले स्पष्ट तौर पर आहत नजर आए।
महाराष्ट्र सरकार में यह एक गठबंधन सहयोगी होने की वजह से अठावले को लगता है कि राज्य के सीएम शिंदे को उनसे सलाह लेनी चाहिए थी। हालांकि आरपीआई (ए) का अच्छा खासा जनाधार रहा है। साथ ही रामदास अठावले केंद्रीय मंत्री भी हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से पार्टी का वोट शेयर लगातार कम होता जा रहा है। चुनाव आयोग की ओर से प्राप्त जानकारी के अनुसार, क्षेत्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने साल 2009 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 0.85 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था।

इसे भी पढ़ें: Political Party: उद्धव ठाकरे के हाथ से कैसे फिसली पिता बालासाहेब की विरासत, 58 साल पहले हुई थी पार्टी की स्थापना

वहीं साल 2014 के विधानसभा चुनाव में यह घटकर 0.19 फीसदी रह गया। इसके बाद साल 2019 में चुनाव लड़ने वाले पार्टी के गिने-चुने सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा था। बता दें कि सालों से जारी गुटबाजी, एक उप-जाति के दूसरे पर भारी पड़ने के प्रयास और शीर्ष पर नेताओं के बीच खींचतान की वजह से ही आरपीआई (ए) एक मजबूत राजनीतिक उपस्थिति कायम करने में फेल रही है।
आरपीआई (ए) के आंतरिक मसलों के कारण से ही पार्टी की सही तस्वीर पता नहीं चल पाती है। पार्टी नेताओं के बीच खींचतान, गुटबाजी और जाति-उपजाति को लेकर टकराव आदि के मुद्दे कई सालों से पार्टी को प्रभावित करते नजर आ रहे हैं।

Loading

Back
Messenger