उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन शोषण की शिकार महिला को उस बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जो बच्चा यौन शोषण करने वाले व्यक्ति का है।
अदालत ने कहा कि यदि ऐसा किया जाता है तो यह ऐसा दुख होगा, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने 12 वर्षीय मूक-बधिर दुष्कर्म पीड़िता द्वारा दायर रिट याचिका पर पिछले सप्ताह यह आदेश पारित किया। इस किशोरी ने 25 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी है।
पीड़िता के वकील ने दलील दी कि लड़की के पड़ोसी ने अनेकों बार उसका यौन शोषण किया, लेकिन बोलने और सुनने में असमर्थता की वजह से वह किसी को भी आपबीती नहीं बता सकी।
अपनी मां द्वारा पूछे जाने पर पीड़िता ने सांकेतिक में खुलासा किया कि आरोपी द्वारा उसके साथ दुष्कर्म किया गया।
इसके बाद, पीड़िता की मां ने यौन अपराधों से बाल संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत दुष्कर्म और अपराधों के लिए आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई।जब पीड़िता का 16 जून, 2023 को चिकित्सा परीक्षण किया गया तो पाया गया कि वह 23 सप्ताह की गर्भवती है। इसके बाद, 27 जून को जब इस मामले को मेडिकल बोर्ड के समक्ष रखा गया तो बोर्ड ने कहा कि चूंकि गर्भधारण 24 सप्ताह से अधिक का है, गर्भपात कराने से पूर्व अदालत की अनुमति आवश्यक है। इसलिए पीड़िता ने यह याचिका दायर की।
अदालत ने संबद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा, यद्यपि कानून कुछ अपवादों को छोड़कर 24 सप्ताह के गर्भपात की अनुमति नहीं देता, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा असाधारण अधिकारों की पहचान की गई है और 24 सप्ताह की सीमा से अधिक के गर्भ के मामलों में भी उच्च न्यायालयों द्वारा गर्भपात की अनुमति के लिए इन अधिकारों का कई बार उपयोग किया गया है।
इस मामले में आपात स्थिति पर विचार करते हुए और मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए अदालत ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति से अलीगढ़ स्थित जवाहरलाल मेडिकल कॉलेज को प्रसूति विभाग, एनेस्थीसिया विभाग और रेडियो डायग्नोसिस विभाग की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय टीम गठित कर 11 जुलाई को याचिकाकर्ता की जांच करने और 12 जुलाई को अदालत के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।