लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण से संबंधित विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश होने के बाद कुछ पूर्व केंद्रीय कानून मंत्रियों ने इसका समर्थन किया, लेकिन कुछ ने बहुमत होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा इसे नौ साल बाद लाने को लेकर सवाल खड़े किए।
संप्रग सरकार के समय केंद्रीय कानून मंत्री रहे वीरप्पा मोइली और कपिल सिब्बल ने विधेयक पारित करने के लिए पहले कांग्रेस का समर्थन नहीं करने के लिए भारतीय जनता पार्टी पर प्रहार किया।
वहीं, पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री रमाकांत खलप ने कहा कि यह भारत के लोगों की एक पुरानी आकांक्षा थी कि महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
संप्रग सरकार में कानून मंत्री रहे अश्वनी कुमार ने कहा कि इस विधेयक के पारित होने के बाद महिलाओं को सम्मान मिलने के साथ देश के भविष्य को नई दिशा देने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि विधेयक के पारित होने का श्रेय सभी राजनीतिक दलों को मिलेगा।
विधेयक का उद्देश्य देश भर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोइली ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि जब चुनाव नजदीक आ रहे हों, तो विधेयक लाना पूरी तरह से राजनीतिक है।
उन्होंने कहा, ‘‘आप जानते हैं कि जब चुनाव करीब आ रहा है, ऐसे समय इसे पेश करना पूरी तरह से राजनीतिक है।
वे केवल राजनीतिक रूप से लाभ उठाने में रुचि रखते हैं। मुझे लगता है कि हानि या लाभ का कोई सवाल ही नहीं है, लेकिन यह 50 प्रतिशत आबादी के लिए सामाजिक न्याय का सवाल है।’’
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर यह एक राजनीतिक कदम नहीं था और वास्तव में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए था, तो केंद्र को इसे 2014 में तब आगे बढ़ाना चाहिए था, जब भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी थी।
खलप ने कहा कि जब वह एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल में केंद्रीय कानून मंत्री थे, तो उन्हें महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान करने के लिए विधेयक को आगे बढ़ाने का सौभाग्य मिला था।
उन्होंने कहा कि यह भारत के लोगों की एक पुरानी आकांक्षा थी कि महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।