यदि इरादे नेक हों और संकल्प मजबूत हो तो कोई भी चुनौतीपूर्ण लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। इस बात का साक्षात उदाहरण हैं असम के मुख्यमंत्री। हम आपको बता दें कि असम का मुख्यमंत्री बनने के बाद हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य को सिर्फ उग्रवाद और नशे से ही मुक्ति नहीं दिलाई बल्कि वह कई सामाजिक बुराइयों को खत्म करने या उसका कुप्रभाव कम करने में भी सफल हो रहे हैं। असम के मुख्यमंत्री ने बाल विवाह जैसी बड़ी सामाजिक बुराई के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया जिसके तहत हजारों लोग जब गिरफ्तार किये गये तो बच्चियों के जीवन से खिलवाड़ करने वालों का हौसला टूट गया। यही नहीं, हिमंत बिस्व सरमा के प्रयासों से असम में मातृ मुत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय कमी आई है। इसके अलावा, हिमंत बिस्व सरमा की सरकार ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को रद्द कर बाल विवाह और बहु विवाह पर रोक लगाने की दिशा में जो बड़ा कदम उठाया था उसके परिणाम भी शानदार रहे हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए तमाम योजनाएं सफलतापूर्वक चला रहे हिमंत बिस्व सरमा के लिए अब एक नई उपलब्धि यह है कि एक ताजा अध्ययन से सामने आया है कि असम में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है।
हम आपको बता दें कि पिछले साल के अंत में ‘द लेंसेट ग्लोबल हेल्थ’ पत्रिका के अध्ययन में बताया गया था कि 2016 से 2021 के बीच, कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाल विवाह की प्रथा आम हो गई है। अध्ययनकर्ताओं ने 1993 से 2021 तक भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद पाया था कि मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल समेत छह राज्यों में बालिका विवाह के मामले बढ़े हैं जबकि छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब समेत आठ राज्यों में बाल विवाह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। इस रिपोर्ट के बाद सवाल उठे थे कि गंभीर होती इस परिस्थिति को देखते हुए राज्य सरकारें क्या कदम उठा रही हैं? और सरकारों का तो पता नहीं लेकिन असम सरकार ने बाल विवाह को रोकने की दिशा में जो कदम उठाये उसकी सफलता की चर्चा आज पूरे देश में हो रही है। हम आपको बता दें कि ‘‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन’’ के अध्ययन दल की रिपोर्ट ‘टूवार्ड्स जस्टिस : इंडिंग चाइल्ड मैरेज’ में कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए। असम का उदाहरण देते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के प्रमुख प्रियंक कानूनगो ने कहा कि पूर्वोत्तर के इस राज्य का मॉडल सभी राज्यों में लागू होना चाहिए।
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हम आपको बता दें कि रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है। इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है जिनमें 8 लाख बच्चे हैं।’’ इसके मुताबिक, असम सरकार के अभियान के कारण राज्य के 30 प्रतिशत गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है जबकि 40 प्रतिशत उन गांवों में उल्लेखनीय कमी देखने को मिली जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था। रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के इन 20 में से 12 जिलों के 90 प्रतिशत लोगों ने इस बात पर भरोसा जताया कि इस तरह के मामलों में प्राथमिकी और गिरफ्तारी जैसी कानूनी कार्रवाई से बाल विवाह को कारगर तरीके से रोका जा सकता है। एनसीपीसीआर अध्यक्ष कानूनगो ने कहा, “प्राथमिकी दर्ज कर बाल विवाह रोकने के असम के मॉडल का देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों को भी अनुकरण करना चाहिए।”
दूसरी ओर, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि उनकी सरकार बाल विवाह पर रोक लगाने के लिए अभियान जारी रखेगी और इस सामाजिक बुराई के खिलाफ हर छह महीने में विशेष अभियान संचालित किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि पुलिस महानिदेशक को वर्ष के अंत में बाल विवाह पर अगले दौर की कार्रवाई के लिए प्रारंभिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया है। मुख्यमंत्री ने बुधवार शाम एक वीडियो संदेश में यह बात कही। उन्होंने कहा कि बाल विवाह के खिलाफ हमारा अभियान और सख्त कार्रवाई जारी रहेगी। प्रत्येक छह महीने में एक विशेष अभियान संचालित किया जाएगा और डीजीपी को इस साल नवंबर-दिसंबर में बाल विवाह पर अगली कार्रवाई के लिए प्रारंभिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि शुरुआत में कुछ लोग ‘‘बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई से खुश नहीं थे लेकिन अब लोग इस सामाजिक बुराई को रोक रहे हैं यहां तक कि अल्पसंख्यक क्षेत्रों में भी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘बच्चों के खिलाफ इस अपराध को समाप्त करने के लिए अभियोजन निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है और बाल विवाह समाप्त करने के असम मॉडल ने देश को आगे का रास्ता दिखाया है।”
हम आपको एक बार फिर बता दें कि असम की सरकार ने पिछले कुछ वर्षों से बाल विवाह के खिलाफ व्यापक अभियान चलाया है। असम मंत्रिमंडल ने कुछ महीने पहले यह फैसला किया था कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी करने वालों पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा। असम में इस सिलसिले में हजारों प्राथमिकी दर्ज कर बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया। कई मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने असम सरकार पर बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मुस्लिम समुदाय को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया है। लेकिन आरोपों से बेपरवाह मुख्यमंत्री अपने अभियान पर लगातार आगे बढ़ रहे हैं।