पंजाब सरकार को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें ठोस और तरल कचरे का प्रभावी प्रबंधन करने में विफल रहने पर पंजाब सरकार पर 1,000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया था। मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने एनजीटी के 25 जुलाई के आदेश को निलंबित कर दिया, जिसमें राज्य के मुख्य सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया था कि ट्रिब्यूनल के निर्देशों की अवहेलना करने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों न की जाए।
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पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ पंजाब सरकार द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया। राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए। एनजीटी के आदेश में पंजाब द्वारा कचरा प्रबंधन कानूनों का लगातार पालन न करने पर कड़ी फटकार लगाई गई थी, जिसमें राज्य को कई चेतावनियों के बावजूद महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने में बार-बार विफल रहने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। 25 जुलाई के फैसले में राज्य में विरासत में मिले कचरे और अनुपचारित सीवेज के प्रबंधन में खामियों पर भी अफसोस जताया गया।
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न्यायाधिकरण ने पिछले छह महीनों के उल्लंघनों के आधार पर जुर्माने की गणना की, जिसमें कहा गया कि पंजाब में लगभग 5.387 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न हुआ है, तथा जून 2024 तक राज्य की सीवेज उपचार क्षमता में 314.06 मिलियन लीटर प्रतिदिन का महत्वपूर्ण अंतर बना हुआ है।