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समीक्षा आदेश अलमारी में रखने के लिए नहीं, जम्मू कश्मीर में इंटरनेट बैन मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि इंटरनेट निलंबन की समीक्षा करने वाले आदेशों का मतलब अलमारी में रखा जाना नहीं है, जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इसे सार्वजनिक करने के निर्देश लेने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया, क्योंकि प्रशासन ने अदालत को सूचित किया कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। इन आदेशों को सार्वजनिक डोमेन में रखें। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने कहा कि समीक्षा आदेशों को अलमारी में नहीं रखा जाना चाहिए। हमने जो आदेश पारित किए हैं, उससे राज्य को यह दिखाने दीजिए कि समीक्षा आदेश प्रकाशित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

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अदालत फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स (एफएमपी) द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसने 2020 में तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर (अब एक केंद्र शासित प्रदेश) में इंटरनेट शटडाउन को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता वाली एक विशेष समिति द्वारा मौजूदा स्थिति का आकलन करने और प्रतिबंध वापस लेने की सिफारिश करने के बाद फरवरी 2021 में इन आदेशों को वापस ले लिया गया। तदनुसार, यूटी प्रशासन ने एक समीक्षा समिति का गठन किया जिसके कारण प्रतिबंध वापस ले लिया गया।

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मीडिया फाउंडेशन की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ मामले में और मई 2020 में फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स बनाम जम्मू और कश्मीर मामले में पारित लगातार दो आदेशों में स्पष्ट रूप से कहा कि इंटरनेट शटडाउन लगाने वाले आदेशों का प्रकाशन आवश्यक है, तभी इन आदेशों को अदालतों के समक्ष चुनौती दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्रतिबंध के आदेशों की समीक्षा करने वाली समीक्षा समिति को प्रकाशित किया जाना चाहिए क्योंकि उन्हें विशेष समिति की बैठक में हुए विचार-विमर्श से कोई सरोकार नहीं है। 

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