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History of Maharashtra Politics Part 5 | जब दंगों की आग में झुलसी देश की आर्थिक राजधानी | Teh Tak

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के बारे में कहा जाता है कि यहां
वक्त कभी थमता नजर नहीं आता है। 24 घंटे सातों दिन भागने वाला शहर मुंबई ने तरक्की
और भागदौड़ भरी जिंदगी के साथ ही अपने सीने पर सैकड़ों जख्म सहे हैं। देश की आर्थिक
राजधानी मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) शहर में 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढाँचे
के गिराए जाने के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। दिसंबर 1992 और जनवरी 1993 के
दौरान मुंबई सांप्रदायिक तनाव और दंगों की चपटे में आने से तकरीबन 900 लोगों की मौत
हुई थी और 168 से अधिक लोग लापता हो गए थे।

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जांच के लिए श्रीकृष्ण कमेटी बनाई गई
25 जनवरी 1993 को कांग्रेस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने
राकांपा बीएन श्रीकृष्ण (तब 51 वर्ष) के नेतृत्व में एक जांच आयोग की स्थापना की।
यह भी पता लगाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति समूह या संगठन के लिए क्या जिम्मेदार
था।  भाजपा-शिवसेना की सरकार ने इस कमीशन को ख़ारिज कर दिया। फिर उसके बाद कमीशन को
दोबारा बैठाने का प्रयत्न किया गया। 1998 में रिपोर्ट तैयार हो गई और रिपोर्ट पेश
की गई।

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1993 में बम धमाके से दहली मुंबई
1992 के बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद मुंबई के कुछ मुस्लिम इसका
बदला लेना चाहते थे। जिसके लिए दुबई में बैठे अंडरवल्ड डॉन दाऊद से मदद मांगी गई।
पहले तो दाऊद ने साफ मना कर दिया। लेकिन कहा जाता है कि कुछ मुस्लिम महिलाओं ने
दाऊद को चूड़ियां लानत के तौर पर भेजी। ये बात दाऊद को लग गई और उसने टाइगर मेमन और
मोहम्मद दौसा के साथ मिलकर मुंबई को दहलाने की प्लानिंग रच डाली।  

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